SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवेचन-जन्मकुण्डली चक्र लिखने की पद्धति यह है कि जो लग्न आता है, उसे पहले रखकर उससे आगे गणना कर १२ कोठों में १२ राशियों को रख देना चाहिए तथा पंचांग में जो-जो ग्रह जिस-जिस राशि के हों, उन्हें उस-उस राशि में रख देने पर जन्मकुण्डली चक्र बन जाता है। चन्द्रकुण्डली की विधि यह है कि चन्द्रमा की राशि को लग्न स्थान में स्थापित कर क्रमशः १२ राशियों को लिख देना चाहिए। फिर जो-जो गृह जिस-जिस राशि के हों। उन्हें उस-उस राशि में स्थापित कर देने पर चन्द्रकुण्डली चक्र बन जाता है। जन्मकुण्डली और चन्द्रकुण्डली चक्र के बनाने के पश्चात् 'चमत्कारचिन्तामणि" या 'मानसागरी' से नौ ग्रहों का फल लिखना चाहिए। फल लिखने की विधि यह है कि जो ग्रह जिस-जिस स्थान में हों, उसका फल उस-उस स्थान के अनुसार लिख देना चाहिए। जैसे प्रस्तुत उदाहरण कुण्डली में सूर्य लग्न से आठवें स्थान में है, अतः आठवें भाव का सूर्य का फल लिखा जाएगा। इस प्रकार समस्त ग्रहों का फल लिखने के पश्चात् सामान्य दर्जे की कुण्डली बनाने के लिए विंशोत्तरी दशा, अन्तर्दशा और उसका फल लिखना चाहिए। अच्छी कुण्डली बनाने के लिए केशवीयजातक पद्धति, जातकपारिजात, नीलकण्ठी, मानसागरी और भारतीय ज्योतिष प्रभृति ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए। विंशोत्तरी दशा निकालने की विधि इस दशा में परमायु १२० वर्ष मानकर ग्रहों का विभाजन किया गया है। सूर्य की दशा ६ वर्ष, चन्द्रमा की १० वर्ष, भौम की ७ वर्ष, राहु की १८ वर्ष, गुरु की १६ वर्ष, शनि की १६ वर्ष, बुध की १७ वर्ष, केतु की ७ वर्ष और शुक्र की २० वर्ष की दशा बतायी गयी है। जन्म नक्षत्रानुसार विंशोत्तरी दशा बोधक चक्र ग्रह | सूर्य | चन्द्र | भौम | राहु | गुरु | शनि | बुध | केतु | शुक्र . वर्ष | ६ | १० | ७ | १८ | १६ | १६ | १७ | ७ । २० । | कृत्तिका रोहिणी मृगशिरा | आर्द्रा | पुनर्वसु | पुष्य आश्लेषा मघा | भरणी नक्षत्र उ. फाल्गुनी | हस्त | चित्रा | स्वाति विशाखा | अनुरा. ज्येष्ठा | मूल पू.फाल्गुनी उ. षाढ़ा | श्रवण | धनिष्ठा शतभिषा पू.भाद्रपद उ. भाद्र. रेवती अश्विनी | पूर्वाषाढ़ा इस चक्र का तात्पर्य यह है कि कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी और उत्तराषाढ़ा में जन्म होने से सूर्य की; रोहिणी, हस्त और श्रवण में जन्म होने से चन्द्रमा की; मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा में जन्म होने से मंगल की दशा में जन्म हुआ माना जाता है। इसी प्रकार आगे भी चक्र को समझना चाहिए। दशा ज्ञात करने की एक सुगम विधि यह है कि कृत्तिका नक्षत्र से लेकर जन्मनक्षत्र १. 'चमत्कारचिन्तामणि' में प्रत्येक ग्रह के द्वादश भावों का फल दिया है। जैसे सूर्य लग्न में हो तो क्या फल, धन स्थान में हो तो क्या फल इत्यादि। इसी प्रकार नौ ग्रहों के फल दिये हैं। परिशिष्ट-२ : १६३
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy