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________________ काल का अन्तर कर शेष को ढाई गुना कर दिन मान में जोड़ देने से इष्टकाल होता है। उदाहरण-वि० सं० २००३ फाल्गुन सुदी ७, गुरुवार को रात के १० बजकर ३० मिनट पर जन्म हुआ है। अतः १० ॥३० जन्म समय में से ५।४४ सूर्यास्त को घटाया ४।४६ इसका सजातीय रूप किया तो ४४ = 33 x = १३ = = ११११ x ६० =११।५५ अर्थात् ११ घटी ५५ पल २८३८ दिनमान में ११।५५ आगत फल को जोड़ा ४०।२२ इष्टकाल हुआ। ४. रात के १२ बजे के बाद और सूर्योदय के पहले का जन्म हो तो जन्म समय और सूर्योदय काल का अन्तर कर शेष को ढाई गुना कर ६० घटी में घटाने से इष्टकाल होता عرابه آل ॥ عمران x » उदाहरण-सं २००३ फाल्गुन सुदी ७, गुरुवार को रात के ४।३० पर जन्म हुआ है। अतः ६१६ सूर्योदय काल में से ४३० जन्म समय को घटाया १४६ इसका सजातीय रूप किया १४६ = ५३ x ३ = ५३ ६०। ० में से ५० = ४।२५ ४। २५ आगत फल को घटाया ५५।३५ इष्टकाल हुआ। ५. सूर्योदय से लेकर जन्म समय तक जितना घण्टा, मिनट का काल हो, उसे ढाई गुना कर देने पर इष्टकाल होता है। उदाहरण-सं २००३ फाल्गुन सुदी ७, गुरुवार को दोपहर के ४४८ पर जन्म हुआ है। अतः सूर्योदय से लेकर जन्म समय तक १० घण्टा ४२ मिनट हुआ; इसका ढाई गुना किया तो २६ घटी ४५ पल इष्टकाल हुआ। ' विशेष-विश्वपंचांग से या लेखक की 'भारतीय ज्योतिष' नामक पुस्तक के आधार से देशान्तर और वेलान्तर संस्कार कर इष्ट स्थानीय इष्टकाल बना लेना चाहिए। जो उपर्युक्त क्रियाओं को नहीं कर सकते हैं, उन्हें पहलेवाले नियमों के आधार पर-से इष्टकाल बना लेना चाहिए, किन्तु यह इष्टकाल स्थूल होगा। भयात और भभोग साधन-यदि इष्टकाल से जन्म नक्षत्र के घटी, पल कम हों, तो जन्मनक्षत्र गत और आगामी नक्षत्र जन्मनक्षत्र कहलाता है तथा जन्मनक्षत्र के घटी, पल इष्टकाल के घटी पलों से अधिक हों, तो जन्मनक्षत्र के पहले का नक्षत्र गत और जन्मनक्षत्र ही वर्तमान या जन्मनक्षत्र कहलाता है। गत नक्षत्र के घटी, पलों को ६० में से घटाकर जो आए, उसे दो जगह रखना चाहिए। एक स्थान पर इष्टकाल को जोड़ देने से भयात और दूसरे स्थान पर जन्म नक्षत्र को जोड़ देने पर भभोग होता है। १८८ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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