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________________ पंचम वर्ग के वर्णों की प्रश्नाक्षरों के वर्गों में संख्या अधिक हो तो लाभाभाव; यदि आलिंगित काल में प्रश्न किया गया हो और आद्य प्रश्नाक्षरों में म न ण हों तो स्वर्ण मुद्राओं का लाभ कहना चाहिए। आलिंगितकाल के प्रश्न में प्रथम वर्ग के तीन वर्ण और पंचम वर्ग के पाँच वर्ण हों तो जमीन के नीचे से धन लाभ; द्वितीय वर्ग के चार वर्ण, तृतीय वर्ग के तीन वर्ण और पंचम वर्ग के छः वर्ण हों तो स्त्रीलाभ, सम्मान प्राप्ति; प्रथम वर्ग के दो वर्ण, चतुर्थ वर्ग के सात वर्ण और पंचम वर्ग के आठ वर्ण हों तो यशोलाभ एवं चतुर्थ वर्ग के चार वर्ण और पंचम वर्ग के चार से अधिक वर्ण हों तो धन-कुटुम्ब हानि, शारीरिक कष्ट, कलह आदि अनिष्ट फल कहना चाहिए। जय-पराजय के प्रश्न में आद्य प्रश्नाक्षर उ ऊ ङ ञ ण न म अं अः वर्ण हों तो विजय-प्राप्ति तथा समस्त प्रश्नाक्षरों में पंचम वर्ग के वर्गों की अधिकता हो तो साधारणतः विजय तथा आद्य प्रश्नाक्षर अं अः मात्रा वाले हों तो पराजय फल समझना चाहिए। रोगनिवृत्ति के प्रश्न में आलिंगित काल में पंचमवर्ग के वर्गों की संख्या प्रश्नश्रेणी में अधिक हो तो जल्द रोगनिवृत्ति; चतुर्थ वर्ग के वर्गों की संख्या अधिक हो तो विलम्ब से रोगनिवृत्ति और ण ङ आद्य प्रश्नाक्षर हों तो प्रयत्न करने पर एक वर्ष में रोगनिवृत्ति का फल बतलाना चाहिए। जब पृच्छक के प्रश्नाक्षरों में आद्य वर्ण पंचम वर्ग का हो तो रोगनिवृत्ति के प्रश्न में डॉक्टरी इलाज करने से जल्दी लाभ होता है। अभिधूमित काल के प्रश्न में रोग-आरोग्य विचार करने के लिए प्रत्येक वर्ग के वर्गों को प्रश्नाक्षरों में से अलग-अलग लिख लेना चाहिए। पुनः द्वितीय वर्ग की मात्राओं की संख्या को चतुर्थ वर्ग की मात्राओं की संख्या से गुणाकर पृथक् गुणनफल को लिख लेना चाहिए। पश्चात् प्रथम, तृतीय और पंचम वर्ग की व्यंजन संख्याओं को परस्पर गुणाकर गुणनफल दो स्थानों पर रखना चाहिए। प्रथम स्थान में पूर्व स्थापित गुणनफल से भाग देकर लब्धि को द्वितीय स्थान के गुणनफल में जोड़ देना चाहिए। पश्चात् जो योगफल आए, उसमें समस्त प्रश्नाक्षरों की मात्रा संख्या से भाग देने से सम शेष में निश्चय रोगनिवृत्ति और विषम शेष में मृत्यु फल कहना चाहिए। यहाँ इतनी और विशेषता है कि समलब्धि और सम शेष में जल्दी अल्प कष्ट में ही रोगनिवृत्ति; विषम लब्धि और सम शेष में कुछ विलम्ब से बीमारी भोगने के बाद रोगनिवृत्ति; सम लब्धि और विषम शेष में अधिक कष्ट भोगने के उपरान्त रोगनिवृत्ति एवं विषम लब्धि और विषम शेष में मृत्यु-प्राप्ति कहनी चाहिए। मास-परीक्षा विचार अथ दिनमाससंवत्सरपरीक्षां वक्ष्यामः-तत्र अ ए क' (का) फाल्गुनः, च टर (चटौ) चैत्रः; तपौ कार्तिकः, यशौ ३ मार्गशीर्षः, आ ऐ ख छ ठाः पौषः, थ फ र षाः माघः, इ ओ ग ज ड वैशाखः, द ब ल साः ज्येष्ठः, ई औ घ झ ढाः आषाढः, ध १. अ ए कः-क. मू.। २. चट:-क. मू.। ३. मार्गशिरः-क. मू. अग्रहायणः-क. मू.। १२६ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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