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________________ ट त प य श ये वर्ण गोलाकार, स्निग्धस्वरूप और लाभ करनेवाले हैं। तथा ये वर्ण जीवित रहने के इच्छुक, गौरवर्ण, दिवसचर, गर्भ में पुत्र उत्पन्न करनेवाले, पूर्व दिशा के वासी और सच्छिद्र हैं। ऐ ख छ ठ थ फ र ष ये वर्ण लम्बे, स्त्री की हानि करनेवाले, अछिद्र, रात्रि में विहार करनेवाले और गर्भ में कन्याएँ उत्पन्न करनेवाले हैं। ये शक्तिशाली, पक्षाक्षर, प्रथम अवस्था में दक्षिण दिग्वासी और कृष्णवर्ण हैं। विवेचन-आचार्य ने उपर्युक्त प्रकरण में प्रश्नशास्त्र के महत्त्वपूर्ण रहस्य का बहु भाग बतला दिया है। तात्पर्य यह है कि जब प्रश्नाक्षर अ ए क च ट त प य श हों अर्थात् वर्ग का प्रथम अक्षर अथवा आचार्य प्रतिपादित पाँच वर्गों में से पहले वर्ग के अक्षर प्रश्नाक्षरों के आदि वर्ण हों तो चोरी के प्रश्न में गौर वर्ण का नाटा व्यक्ति पूर्व दिशा की ओर का रहनेवाला चोर समझना चाहिए। जब सन्तान के सम्बन्ध में प्रश्न किया हो और उपर्युक्त वर्ण में कोई प्रश्न का आद्य वर्ण हो तो गौर वर्ण का सुन्दर स्वस्थ पुत्र होता है। विवाह-स्त्री लाभ के सम्बन्ध में जब प्रश्न हो और प्रश्नाक्षरों की उपर्युक्त स्थिति हो तो नाटे कद की सुन्दर गौर वर्ण की भार्या जल्द मिलती है। यद्यपि ये वर्ण सच्छिद्र हैं, इससे विवाह होने में अनेक प्रकार की बाधाएँ आती हैं, पर दिवाबली होने के कारण सफलता मिल जाती है। धन-लाभ और मुकद्दमा-विजय के सम्बन्ध में प्रश्न किया हो और प्रश्नाक्षरों की स्थिति उपर्युक्त हो तो पूर्व की ओर से धनलाभ होता है; यों तो प्रारम्भ में धनहानि भी दिखाई पड़ती है, पर अन्त में धनलाभ होता है। मुकद्दमा के प्रश्न में बहुत प्रयत्न करने पर विजय की आशा कहनी चाहिए। यदि रोगी की रोगनिवृत्ति के सम्बन्ध में प्रश्न की उपर्युक्त स्थिति हो तो वैद्य के इलाज के द्वारा रोगी थोड़े दिनों में आरोग्य प्राप्त करता है। जब प्रश्नाक्षरों के आदि वर्ण ऐ ख छ ठ थ फ र ष हों तो चोरी के प्रश्न में चोर लम्बे कद का, कृष्ण वर्ण, दक्षिण दिशा का रहनेवाला और चोरी के काम में पक्का होशियार समझना चाहिए। ऐसे प्रश्नाक्षरों में चोरी गयी चीज मिलती नहीं है, चोरी गयी चीज की दिशा दक्षिण कहनी चाहिए। गर्भ के होने पर लड़का या लड़की कौन सन्तान उत्पन्न होगी? ऐसे प्रश्न में जब प्रश्नाक्षरों की उपर्युक्त स्थिति हो तो लम्बी, स्वस्थ और काले रंग की लड़की उत्पन्न होने का फल कहना चाहिए। विवाह के प्रश्न में उपर्युक्त स्थिति होने पर विवाह नहीं होता है। वाग्दान-सगाई हो जाने के बाद सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है। धनलाभ के प्रश्न में उक्त स्थिति होने पर प्रारम्भ में धनलाभ और अन्त में धनहानि कहनी चाहिए। मुकद्दमा-विजय के प्रश्न में उपर्युक्त स्थिति के होने पर थोड़ा प्रयत्न करने पर भी अवश्य विजय मिलती है। यद्यपि प्रारम्भ में ऐसा मालूम पड़ता है कि इसमें सफलता नहीं मिलेगी; लेकिन अन्ततोगत्वा विजयलक्ष्मी की ही प्राप्ति होती है। इओ ग ज ड द ब ल साः त्रिकोणाः, हरिताः, दिवसाक्षराः, युवानः, नागोरगाः, पुत्रकराः, पश्चिमदिग्वासिनः। ई औ घ झ ढ ध म हाः चतुरस्राः, मध्यच्छिद्राः, मासाक्षराः, यौवनघ्नाः, गौरश्यामाः, उत्तरदिग्वासिनः। उ ऊ ऊ आ ण न माः अं अः एते १. द्रष्टव्यम्-के. प्र. र. पृ. ८। बृहज्ज्योतिषार्णव, अ. ५। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : १२३
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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