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________________ न म इन प्रश्नाक्षरों के होने पर सूखे हुए तृण, काठ, चन्दन, देवदारु, दूब आदि समझने चाहिए। इ और ज प्रश्नवर्गों के होने पर शस्त्र और वस्त्र सम्बन्धी मूलयोनि कहनी चाहिए। इस प्रकार मूलयोनि का प्रकरण समाप्त हुआ। विवेचन-मूलयोनि के प्रश्न के निश्चित हो जाने पर कौन-सी मूलयोनि है? यह जानने के लिए चर्याचेष्टा आदि के द्वारा विचार करना चाहिए। यदि प्रश्नकर्ता शिर को स्पर्श कर प्रश्न करे तो वृक्ष की चिन्ता, उदर को स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो गुल्म की चिन्ता, बाहु को स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो लता की चिन्ता और पीठ को स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो वल्ली की चिन्ता कहनी चाहिए। यदि पैर को स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो सकरकन्द, जमीकन्द आदि की चिन्ता; नाक मलते हुए प्रश्न करे तो फूल की चिन्ता; आँख मलते हुए प्रश्न करे तो फल की चिन्ता; मुँह पर हाथ फेरते हुए यदि प्रश्नकर्ता प्रश्न करे तो पत्र की चिन्ता और जाँघ खुजलाते हुए प्रश्न करे तो त्वक्-चिन्ता कहनी चाहिए। प्रश्न कुण्डली में मंगल के बलवान होने पर छोटे धान्यों की चिन्ता, बुध और बृहस्पति . के बलवान होने पर बड़े धान्यों की चिन्ता, सूर्य के बलवान होने पर वृक्ष की चिन्ता, चन्द्रमा के बलवान होने पर लताओं की चिन्ता, बृहस्पति के लग्नेश होने पर ईख की चिन्ता, शुक्र के लग्नेश होने पर इमली की चिन्ता, शनि के बलवान होने पर दारु की चिन्ता, राहु के बलवान होने पर तीखे काँटेदार वृक्ष की चिन्ता एवं शनि के लग्नेश होने पर फलों की चिन्ता कहनी चाहिए। मेष और वृश्चिक इन प्रश्न लग्नों के होने पर क्षुद्र सस्यचिन्ता; वृष, कर्क और तुला इन प्रश्न लग्नों के होने पर लताओं की चिन्ता; कन्या और मिथुन इन प्रश्न लग्नों के होने पर वृक्ष की चिन्ता; कुम्भ और मकर इन प्रश्न लग्नों के होने पर काँटेदार वृक्षकी चिन्ता; मीन, धनु और सिंह इन प्रश्न लग्नों के होने पर ईख, धान और गेहूँ के वृक्ष की चिन्ता कहनी चाहिए। यदि सूर्य सिंह राशि में स्थित हो तो त्वक् चिन्ता, चन्द्रमा कर्क राशि में स्थित हो तो मूल चिन्ता, मंगल मेष राशि में स्थित हो तो पुष्पचिन्ता, बुध मिथुन राशि में स्थित हो तो छाल की चिन्ता, बृहस्पति धनु राशि में स्थित हो तो फल-चिन्ता, शुक्र वृष राशि में हो तो पक्व फल की चिन्ता, शनि मकर राशि में स्थित हो तो मूल चिन्ता एवं राहु मिथुन राशि में स्थित हो तो लताचिन्ता अवगत करनी चाहिए। यदि बुध लग्नेश हो, अपने शत्रु भाव में स्थित हो अथवा लग्न भाव या शत्रु भाव को देखता हो तो सुन्दर, सौम्य एवं सूक्ष्म वृक्षों की चिन्ता; शुक्रलग्नेश हो, अपने मित्र भाव में स्थित हो अथवा लग्न भाव गा मित्र भाव को देखता हो तो निष्कण्टक वृक्ष की चिन्ता; चन्द्रमा लग्नेश हो, शत्रु भाव में रहने वाले ग्रहों से दृष्ट हो अथवा लग्न स्थान या स्वराशि स्थान को देखता हो तो केला के वृक्ष की चिन्ता, बृहस्पति लग्न स्थान में हो, लग्नेश के द्वारा देखा जाता हो और शत्रु स्थान में सौम्य ग्रह हो या मित्र स्थान में क्रूर ग्रह हो तो नारियल के वृक्ष की चिन्ता; शनि स्वराशि में हो, लग्नेश की दृष्टि शनि भाव पर हो और लग्नेश मित्र भाव में स्थित हो तो ताल वृक्ष की चिन्ता; राहु मीन या मेष राशि में स्थित होकर मकर राशि के ग्रह से तात्कालिक मैत्री सम्बन्ध रखता हो तो टेढ़े काँटेदार वृक्ष की चिन्ता एवं मंगल लग्न स्थान में स्थित होकर मेष या वृश्चिक राशि में रहनेवाले ग्रह से दृष्ट हो अथवा मंगल लग्नेश हो और शत्र ११४ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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