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________________ 67/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार वे साक्षात शांति रूप हैं, शांतिकर्ता हैं। सब भयों को हरने वाले हैं ऐसे शांतिनाथ प्रभु मुझे शांति दें। 3. इस मंत्र की युगों युगों से मोक्ष पथ गामियों ने परम श्रद्धापूर्वक आराधना की है। इसे सतत् उच्चारित किया है। स्मरण किया है एवं जीया है। यह प्राणवंत, प्रभावी एवं क्षमतावान है। सरचार्ड है। इसकी तरंगे ब्रह्मण्ड में विद्यमान है। पुण्यशाली भव्य आत्माएं इसका श्रद्धापूर्वक स्मरण कर पुण्यानुबंधी पुण्य बांधती हैं। प्रभु की सेवा में अनेक नरेन्द्र, देव, देवियाँ विद्यमान रहते हैं। भाव पूर्वक स्मरण का निःसंदेह बहुत महात्मय है। ऐसा कई आत्माओं का निजी अनुभव है। भाव नमस्कार कर्म काटने का अमोध अस्त्र है। कर्मरूपी बीहड़ वन . के लिए दावानल सदृश है। तिमिराच्छादित घोर अटवी में प्रखर सूर्य के समान पथ प्रदर्शक है। ऐसे जंगल में जहाँ अहंकार एवं ममकार के व्याघ्र हँकार कर रहे हैं, उसमें यह मंत्र आत्मारूपी केसरीसिंह सदृश है। नवकार मंत्र में पाँचों पदों के साथ नमो का उच्चारण नमनीयता यानी गुण ग्राहकता के साथ साथ पवित्र ऊँ "ओम्" "ओम्” का उच्चारण कराता है। 'अरिहंता, असरीरा, आयरीया, उवज्झाय, मुणिणो पचक्खर निप्पण्णों, ओंकारो।" पंच परेमेष्टि (समण सुत) जो अरिहंत का अ। सिद्ध जो अशरीर है, कर्म क्षय से उस पद का भी अ , आचार्य का 'आ', उपाध्याय का 'अ', साधु यानी मुनिका 'म' मिलकर 'अ+अ+आ+उ+म= 'ओम्' उच्चारण बनता है। भावपूर्वक ओम्-ओम् पवित्र घोष है जिसके लिये कहा है ओंकारबिदुसंयुक्तं, नित्यं ध्यायति योगिनः। कामदं, मोक्षदं चैव ओंकाराय, नमो नमः ।।
SR No.002322
Book TitleJaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2013
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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