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________________ जो विषय भोगों का ध्यान किया करते हैं; वे कंकपक्षी के समान पापी और अधम हैं । 17. संयम, आत्म-रक्षा कवच अतताए परिव्व । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 46] सूत्रकृतांग - 1/11/32 आत्म-रक्षा (आत्मा को पाप से बचाने ) के लिए संयमशील होकर विचरण करें । 18. मेरुवत् अचल अहणं वयमावन्नं; फासाउच्चावया फुसे । विणिहणेज्जा वारण वे महागिरी || श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 47 ] सूत्रकृतांग - 11/37 जिसप्रकार महागिरि मेरु हवा के झंझावात से विचलित नहीं होता, उसी प्रकार व्रतनिष्ठ पुरुष सम-विषम, ऊँच-नीच और अनुकूल-प्रतिकूल परिषहों के आने पर भी धर्म - पथ से विचलित नहीं होता । 19. मग्नता 1 - प्रत्याहृत्येन्द्रियव्यूहं समाधाय मनोनिजम् । दधच्चिन्मात्रविश्रान्तिर्मग्न इत्यभिधीयते ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 47 ] ज्ञानसार 21 जो आत्मा इन्द्रिय समूह को नियन्त्रित और मन को समाधिस्थ ( एकाग्र ) कर केवल चैतन्य स्वरूप ज्ञान में विश्राम करती है, वह मग्न कहलाती है । 20. ज्ञान - लीनता - ? - यस्य ज्ञान - सुधा-सिन्धौ परब्रह्मणिमग्नता । विषयान्तरसंचारस्तस्य हलाहलोपमम् ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड- 6 • 61 "
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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