SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 358. ममत्त्व-त्याग जे ममाइयमई जहाइ से चयइ ममाइयं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 736] - आचारांग 12/608 जो ममत्त्व बुद्धि का त्याग करता है । वस्तुत: वही ममत्त्व का त्याग कर सकता है । वही मुनि यथार्थ में पथ का द्रष्टा है, जो किसी भी प्रकार का ममत्त्व भाव नहीं रखता है । 359. लोकैषणा-त्याग वंता लोगसन्नं, से मइमं परिक्कमेज्जासि । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 736] - आचारांग 12/6, 1/2/4 एवं 130 बुद्धिमान् पुरुष लोकैषणा को छोड़कर संयम में पुरुषार्थ करें । 360. वीरसाधक असहिष्णु णारतिं सहती वीरे, वीरे न सहइ रतिं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 736] - आचारांग 12/698 वीर साधक संयम के प्रति अरुचि को सहन नहीं करता और विषयों की अभिरुचि को भी सहन नहीं करता । 361. लोकरंजनार्थ धर्म-त्याग यथा चिन्तामणिं दत्ते, बठरो बदरीफलैः । इहा जहाति सद्धर्मं, तथैव जनरञ्जने ॥ . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 740] - ज्ञानसार - 232 जैसे कोई मूर्ख बेर के बदले में चिंतामणि रत्न बेच देता है, ठीक वैसे ही कोई मूर्ख लोकरंजन के लिए अमूल्य चिंतामणि रूप अपने धर्म को छोड़ देता है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 145
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy