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________________ विनिवृत्ताग्रहत्वं च तथा द्वन्द्वसहिष्णुता । तदभावश्च लाभश्च बाह्यानां कालसंगतः ॥ धृति क्षमा सदाचारो योगवृद्धि शुभोदया । आदेयता गुरुत्वं च शमसौख्यमनुत्तमम् ॥ . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1636] - योगबिन्दु 52-53-54 अधिक क्या कहा जाए ? योग से स्थिरता, धीरज, श्रद्धा-मैत्री, लोकप्रियता, प्रतिभा-अन्त:स्फुरणा-अन्तर्ज्ञान द्वारा तत्त्व-प्रकाशन, आग्रहहीनता, अनुकूल से वियोग, प्रतिकूल का संयोग जैसे विषम द्वन्द्वों को सहनशीलता के साथ झेलना, वैसे कष्टों का नहीं आना, यथासमय अनुकूल बाह्य स्थितियाँ प्राप्त होना, सन्तोष, क्षमाशीलता, सदाचार, उत्तम फलमय योगवृद्धि, औरों की दृष्टि में आदेयभाव, आदर्श पुरुष के रूप में समादर, गुरुत्व-गौरव-प्रतिष्ठा, सर्वोत्तम प्रशम-सुख तथा अनुपम शान्ति की अनुभूतिये सब प्राप्त होते हैं। 74. योगाङ्ग यम-नियमाऽऽसन प्राणायाम प्रत्याहार । धारणा-ध्यान-समाध्योऽष्टावङ्गानि योगस्थेति ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1638] - पातंजल योगदर्शन 2/29 योग के आठ अङ्ग हैं (१) यम (२) नियम (३) आसन (४) प्राणायाम (५) प्रत्याहार (६) धारणा (७) ध्यान और समाधि । 75. योगसत्य जोगसच्चेणं जोगं विसोहेइ । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1650] - उत्तराध्ययन - 29/53 योगसत्य से जीव मन-वचन और काया की प्रवृत्ति को विशुद्ध करता है। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 75
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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