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________________ विवेकी पुरुष माया और लोभ तथा मान और क्रोध नहीं करे । 403. कर्म-फल सुचिणा कम्मा सुचिणफला भवंति । दुच्चिणा कम्मा दुच्चिणफला भवंति ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2711] - औपपातिक सूत्र 56 अच्छे कर्म का फल अच्छा होता है और बुरे कर्म का फल बुरा होता है। 404. आत्म-रमण जे अणण्णदंसी से अणण्णारामे । जे अणण्णारामे, से अणण्णदंसी ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2712] - आचारांग - 12/01 जो अनन्य को देखता है वह अनन्य में रमण करता है। जो अनन्य में रमण करता है, वह अनन्य को देखता है । 405. कुशल पुरुष कुसले पुण णो बद्धे णो मुक्के । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2712) - आचारांग 1A104 कुशल पुरुष न बद्ध है और न मुक्त। 406. कैसा वीर प्रशंसनीय ? एस वीरे पसंसिए अच्चेति लोगसंजोगं । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2712] - आचारांग - 12/na वहीं वीर पुरुष सर्वत्र प्रशंसा प्राप्त करता है, जो लोग-संयोग (धन परिवारादि प्रपंचों) से मुक्त हो जाता है । अभिधान राजेन्द्र कोप में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 158
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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