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________________ छल-कपट के स्थान को छोड़ो । 390. साधक मृदु वुच्चमाणो न संजले । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2705] सूत्रकृतांग 19731 साधक को यदि कोई दुर्वचन भी कहे तो वह उस पर क्रोध न करे, गरम न हो । - - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2704 ] सूत्रकृतांग - 1/9/25 391. काम अनभ्यर्थना लद्धे कामे ण पत्थेज्जा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2705 ] सूत्रकृतांग - 1/9/32 साधक भोगों के प्राप्त होने पर भी उनकी वाँछा न करें, स्वागत BASE न करें । 392. साधक सहिष्णुता सुमणो अहिया सेज्जा णय कोलाहलं करे । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2705 ] सूत्रकृतांग - 19/31 साधक को जो भी कष्ट हो, प्रसन्न मन से सहन करें । कोलाहल - न करें । 393. विवेक ही धर्म [ विवेगेधम्म माहिए ] विवेगे एस माहिए । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग पृ. 2705 ] सूत्रकृतांग - 1/9/32 विवेक में ही धर्म है । 394. आर्य - धर्म - शिक्षा आरियाई सिक्खेज्जा । अभिधान राजेन्द्र कोप में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 155
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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