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________________ - सूत्रकृतांग 1AR जो परिग्रह (संग्रवृत्ति) में व्यस्त हैं, वे संसार में अपने प्रति वैर ही बढ़ाते हैं। 376. काम-भोग, दुःख भरे आरम्भ संभियाकामा, न ते दुक्ख विमोयगा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2701] .. - सूत्रकृतांग - 1MR काम-भोग आरम्भ-समारम्भ से भरे हुए ही होते हैं । इसलिए वे दु:ख-विमोचक नहीं हो सकते हैं। 377. आत्मघातक जसं कित्ति सिलोगं च जा य वंदण-पूयणा । सव्वलोयंसि जे कामा, विज्जं परिजाणिया । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2703] - सूत्रकृतांग - 12/22 यश-कीर्ति प्रशंसा, वंदन-पूजन और संसार के जितने भी कामभोग हैं, विद्वान साधक, आत्मघातक समझकर उन सबका परित्याग करें। 378. धर्म-विरुद्ध वचन वैधादीयं च णो वदे । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2703] ' - सूत्रकृतांग - 143 धर्म के विरुद्ध मत बोलो। 379. मर्मघातक वाणी णेय वंफेज्ज मम्मयं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2704] - सूत्रकृतांग - 1925 मर्मघाती वचन मत बोलो। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 152
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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