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________________ 269. अभयदान दाणाण सेढें अभयप्पदाणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2490] - सूत्रकृतांग1/6/23 अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है। 270. संगति से गुण-दोष संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2493 ] - धर्मसंग्रह। दोष और गुण संसर्ग से ही आते हैं। 271. श्रमण द्वारा अकरणीय गिहिणो वेयावडियं, न कुज्जा अभिवायणवंदणपूयणं च । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2496 ] - हारिभद्रीयाष्टक सटीक 2/3 श्रमण-श्रमणी को गृहस्थ का वैयावृत्य (सेवा), अभिवादन, वन्दन और पूजन नहीं करना चाहिए। 272. उत्तमोत्तम दान दानात्कीर्तिः सुधाशुभ्रा, दानात् सौभाग्यमुत्तमम् । दानात्कामार्थ मोक्षाः स्यु-र्दानधर्मों वरः ततः ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2499 ] - पंचाशक सटीक विवरण - 2 - दान देने से संसार में चारों तरफ कीर्ति फैलती है। दान देने से ही उत्तम सौभाग्य प्राप्त होता है और दान देने से अर्थ की प्राप्ति, सभी शुभकामनाओं की शुद्धि तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए सभी धर्मों में दानधर्म सर्वोत्तम कहा गया है। 273. धन्य कौन ? ते धन्ना कयपुन्ना, जणओ जणणी असयणवग्गो अ । जेसिं कुलम्मि जायइ, चारित्तधरो महापुत्तो ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 . 126 -
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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