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________________ 216. तप से कर्म नष्ट तवसा धुणइ पुराण पावगं । - तपश्चर्या से पूर्वकृत पापकर्म नष्ट होते हैं । 217. परमसुखाभिलाषी श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2207 ] एवं [भाग 5 पृ. 1566] दशवैकालिक 9/410 एवं 107 सव्वे पाणापरमाहम्मिया । - सभी प्राणी परम सुख के अभिलाषी हैं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2213] दशवैकालिक 1/40 218. बाल- बुद्धि वित्तं पसवो य तं बाले सरणं ति मण्णती । एते मम ते सुवी अहं, नो ताणं सरणं न विज्जइ ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2220] सूत्रकृतांग - 123/16 मूर्खजन ऐसा मानता है कि यह धन- पशु और ज्ञातिजन मेरे शरणभूत और रक्षक हैं और मैं भी उनका हूँ, किन्तु वास्तव में ये सब उसके लिए न तो त्राणभूत होते हैं और न ही शरणभूत । 219. योग - नियम G शौच सन्तोष तपः स्वाध्यायेश्वर प्रणिधानानि नियमाः । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 2226] पातंजल योगदर्शन 2/32 शौच ( देहशुद्ध एवं चित्तशुद्धि) संतोष, तप, स्वाध्याय तथा D परमात्म-चिन्तन-ये पाँच नियम हैं । अभिधान राजेन्द्र कोष में सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 112
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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