SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में भस्म जं अन्नाणी कम्मं, खवेइ बहुयाहिं वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो, खवेड़ ऊसासमित्तेणं ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2057] एवं [भाग 7 पृ. 165] संबोधसत्तर 100 154. क्षण महाप्रत्याख्यान 101 में अज्ञानी व्यक्ति जिन कर्मों को करोड़ों वर्षों व्यक्ति उन्हीं कर्मों को श्वासमात्र में (क्षणभर में) 155. घर का जोगी जोगिना 1 अतिपरिचयादवज्ञा भवति विशिष्टेऽपि वस्तुनि प्रायः । लोकः प्रयागवासी, कूपे स्नानं सदा चरति ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 4 पृ. 2070 ] धर्मबिन्दु 1/48 [48] प्राय: विशिष्ट वस्तु से भी अतिपरिचय रखने से अवज्ञा या अवगणना होने लगती है। जैसे प्रयाग में रहनेवाले गंगा में नहीं नहाकर सदा कुएँ के जल से ही स्नान करते हैं । 156. घर की मुर्गी साग बराबर अतिपरिचयादवज्ञा । B अधिक परिचय करने से अनादर होता है । 157. दर्शनावरणीय प्रकार क्षय करता है, ज्ञानी - क्षय कर देता है । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2070 ] धर्मबिन्दु सटीक 1/48 [48] BUR सुह पडिबोहा निद्दा,... णिद्दा णिद्दाय दुक्ख पडिबोहा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 2072 ] निशीथभाष्य - 133 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड - 4 • 96
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy