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________________ 146. ज्ञान-गुम्फित जहा सूइ ससुत्ता, पडिया न विणस्सइ । तहा जीवे ससुत्ते, संसारे न विणस्सइ ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1993] - उत्तराध्ययन 29/604 जैसे धागे में पिरोइ गई सूई कूड़े-कचरे में गिर जाने पर भी गुम नहीं होती वैसे ही ज्ञानरूपी धागे से युक्त जीव संसार में नहीं भटकता और न ही विनाश को प्राप्त होता है। 147. ज्ञान, प्रकाशक नाण संपन्नयाएणं जीवे, सव्वभावाभिगमं जणयइ ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग + पृ. 1993] - उत्तराध्ययन - 29/61 ज्ञान की सम्पन्नता से जीव सभी पदार्थ-स्वरूप को जान सकता है। 148. सूत्र बनाम अर्थ प्रमाण अत्थधरो तु पमाणं, तित्थगर मुहुग्गत्तो तु सो जम्हा । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1995] - निशीथभाष्य 22 . सूत्रधर (शब्द-पाठी) की अपेक्षा अर्थधर (सूत्र रहस्य का ज्ञाता) को प्रमाण मानना चाहिए, क्योंकि अर्थ साक्षात् तीर्थंकरों की वाणी से निःसृत है। 149. ज्ञानी-निन्दा निषेध मा नाणीणमवणं, करेसु ता दीव तुल्लाणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 4 पृ. 1996 ] . - जीवानुशासनसटीक 16 दीपतुल्य ज्ञानियों की निन्दा (अवर्णवाद) मत करो । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-4 • 94
SR No.002319
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages262
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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