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________________ आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए । आज्ञा का उल्लंघन करने पर सुख कैसे ? 37 आज्ञा खण्डित धर्म आणा खंडणकरीय, सव्वंपि निरत्थयं तस्स । आणा रहिओ धम्मो, पलाल पुलुव्व पडिहाइ ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 141] हीरप्रश्न - प्रकाश-1 जो आज्ञा का खंडन करता है उसका सबकुछ निरर्थक हो जाता है । आज्ञारहित धर्म बिना कणवाले घास के पुले जैसा है । - 38 समय मूल्यवान् विहड विद्धंसह ते सरीरयं, समयं गोयम मा पमायए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 2 पृ. 174] - उत्तराध्ययन 10/27 यह तुम्हारा शरीर टूट जानेवाला है, विध्वंस हो जानेवाला है, इसलिए क्षणभर का भी प्रमाद मत करो । 39 साधनाशील आतंकदंसी अहियंति णच्चा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग- 2 पृ. 174] एवं [भाग 6 पृ. 1061] आचाराग 1/7/56 साधनाशील पुरुष हिंसा में आतंक देखता है, उसे अहितकर मानता है । इसलिए हिंसा से निवृत्त होने में समर्थ होता है । 1 40 आतङ्कदर्शी आयंकदंसी न करेति पावं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग- 2 पृ. 175] एवं [भाग 5 पृ. 1316] अभिधान राजेन्द्र में सूक्ति-सुधारस • खण्ड-2066
SR No.002317
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages198
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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