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________________ 115. अर्थ : दुःखद अर्थानामर्जने दुःखमर्जितानां च रक्षणे । आये दुःखं व्यये दुःखं, धिगर्थं दुःखकारणम् ॥ ( पाठान्तरम् - धिगर्थोऽनर्थ भाजनम् ॥ ) श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 506-803] स्थानांग सूत्र सटीक 313 पञ्चतन्त्र 21124 धन के कमाने में दु:ख, कमाये हुए धन की रक्षा में दुःख, उसके नाश में दु:ख और खर्च में दुःख ! अतः ऐसे दुःख के कारण रूप धन को धिक्कार है । इससे कष्ट ही कष्ट है । 1 - - - 116. धर्म अर्थ- कामः अविरोधी जिण वयणम्मि परिणए, अवत्थविहि अणु ठाणओ धम्मो । सच्छा ऽ सयप्पयोगा, अत्थो वीसंभओ कामो ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 507 ] दशवैकालिक नियुक्ति 264 अपनी-अपनी भूमिका के योग्य बिहित अनुष्ठान रूप धर्म, स्वच्छ आशय से प्रयुक्त अर्थ, मर्यादानुकूल वैवाहिक नियंत्रण से स्वीकृत कामजिनवाणी के अनुसार ये परस्पर अविरोधी है । 117. धर्म - अर्थ - काम अविसंवादी धम्मो अत्थ कामो भिन्ने ते पिंडिया पडिसवत्ता । जिणवयण उत्तिन्ना, अवसत्ता होंति नायव्वा ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 1 पृ. 507 ] दशवैकालिक नियुक्ति 262 धर्म, अर्थ और काम को भले ही अन्य कोई परस्पर विरोधी मानते हो, किन्तु जिनवाणी के अनुसार तो वे कुशल अनुष्ठान में अवतरित होने के कारण परस्पर अविरोधी है । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-1 /87 -
SR No.002316
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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