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________________ सगडे पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा चोत्थीए पुढवीए उक्कोसेणं दससागरोवमठिइएसु नेरइयत्ताए उववन्ने ॥ 822. तए णं तस्स सुभद्दसत्थवाहस्स अदा भारिया जायनिन्दुया यावि होत्था, जाया जाया दारगा विणिहायमावजन्ति । तए णं से छणिए छागलिए चोत्थीए पुढवीए 5 अणन्तरं उव्वट्टित्ता इहेव साहजणीए सुभद्दस्स सत्थवाहस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तत्ताए उववन्ने । तए णं सा भद्दा सत्थवाही अन्नया कयाइ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया। तए णं तं दारगं अम्मपियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेट्ठाओ ठावेन्ति, दोच्चं पि गिण्हावेन्ति, अणुपु- 10 व्वेणं सारक्खेन्ति संगोवेन्ति संवड्ढेन्ति, जहा उज्झियए, [जाव] "जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्ते चेव सगडस्स हेट्ठा ठाविए, तम्हा णं होउ णं अम्हं एस दारए सगडे नामेणं" सेस जहा उज्झियए । सुभद्दे लवणसमुद्दे कालगए, माया वि कालगया । से वि सयाओ गिहाओ निच्छुढे । तए णं से 15 सगडे दारए सयाओ गिहाओ निच्छूढे समाणे सिंघाडय' [0] तहेव [जाव] सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था ॥ तए णं से सुसेणे अमच्चे तं सगडं दारगं अन्नया कयाइ सुदरिसणाए गणियाए गिहाओ निच्छुभावेइ । २ सुद- 20 रिसणियं गणियं अन्भिन्तरियं ठावेइ । २ सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुञ्जमाणे विहरइ ॥ ___ तए णं से सगडे दारए सुदरिसणाए गिहाओ निच्छुढे समाणे अन्नत्थ कत्थ वि सुई वा [0] अलभमाणे अन्नया 25 HHHHHHI
SR No.002313
Book TitleVivagsuyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusudan Modi
PublisherGurjar Granth Ratna Karyalay
Publication Year1935
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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