SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2. वर्णिक छंद - जिस प्रकार मात्रिक छंदों में मात्राओं की गिनती होती है उसी प्रकार वर्णिक छंदों में वर्णों की गणना की जाती है। वर्णों की गणना के लिए गणों का विधान महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक गण तीन मात्राओं का समूह होता है। गण आठ हैं जिन्हें नीचे मात्राओं सहित दर्शाया गया है यगण । ऽ ऽ मगण 555 तगण ऽ ऽ । रगण ऽ । ऽ जगण । ऽ। भगण ऽ । ऽ नगण I│L सगण ।। ऽ लक्षण - - (86) - - पंचास्तिकाय में मुख्यतया गाहा छंद का ही प्रयोग किया गया है। इसलिए यहाँ गाहा छंद के लक्षण और उदाहरण दिये जा रहे हैं। - गाहा छंद के प्रथम और तृतीय पाद में 12 मात्राएँ, द्वितीय पाद में 18 तथा चतुर्थ पाद में 15 मात्राएँ होती हैं। पंचास्तिकाय ( खण्ड - 2) नवपदार्थ - अधिकार
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy