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________________ 151. कम्मस्साभावेण य सव्वण्हू सव्वलोगदरसी य। पावदि इंदियरहिदं अव्वाबाहं सुहमणतं।। कम्मस्साभावेण सव्वण्हू सव्वलोगदरसी [(कम्मस्स)+ (अभावेण)] कम्मस्स (कम्म) 6/1 अभावेण' (अभाव) 3/1 अव्यय (सव्वण्हु) 1/1 वि [(सव्व) सवि-(लोग)(दरसी) 1/1 वि अनि] अव्यय (पाव) व 3/1 सक [(इंदिय)-(रहिद) भूकृ 2/1 अनि] (अव्वाबाह) 2/1 वि [(सुहं)+(अणंत)] सुहं (सुह) 2/1 अणंतं (अणंत) 2/1 वि कर्म का अभाव होने के कारण और . . सबको जाननेवाला समस्त लोक को देखनेवाला और पाता है इन्द्रिय-मुक्त य पावदि इंदियरहिद बाधा-रहित अव्वाबाहं सुहमणंतं सुख को अनन्त अन्वय- कम्मस्साभावेण सव्वण्हू य सव्वलोगदरसी इंदियरहिदं अव्वाबाहं य सुहमणंतं पावदि। अर्थ- ...(ज्ञानावरणादि) कर्म का अभाव होने के कारण (वह ज्ञानी) सबको जाननेवाला और समस्त लोक को देखनेवाला (होता है)। (तदनन्तर वह) इन्द्रिय-मुक्त, बाधा-रहित और अनन्त सुख पाता है। 1. कारण व्यक्त करनेवाले शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। (प्राकृत-व्याकरण, पृष्ठ 36) (54) पंचास्तिकाय (खण्ड-2) नवपदार्थ-अधिकार
SR No.002307
Book TitlePanchastikay Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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