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________________ 66. जह पुग्गलदव्वाणं बहुप्पयारेहिं खंधणिव्वत्ती। अकदा परेहिं दिट्ठा तह कम्माणं वियाणीहि।। जह जैसे पुग्गलदव्वाणं बहुप्पयारेहि खंधणिव्वत्ती अकदा परेहिं दिय अव्यय [(ग्गल)-(दव्व) 6/2] पुद्गल द्रव्यों के [(बहु) वि-(प्पयार) अनेक भेदों में 3/2-7/2] [(खंध)-(णिव्वत्ति) 1/1] स्कंधों का उत्पादन (अ-कदा) भूक 1/1 अनि नहीं किया हुआ (पर) 3/2 वि अन्य किन्हीं के द्वारा (दिठ्ठा) भूकृ 1/1 अनि देखा गया अव्यय वैसे ही (कम्म) 6/2 कर्मों के (वियाणीहि) जानो विधि 2/1 सक अनि कम्माणं वियाणीहि अन्वय- जह पुग्गलदव्वाणं खंधणिव्वत्ती बहुप्पयारेहिं परेहिं अकदा दिट्ठा तह कम्माणं वियाणीहि। अर्थ- जैसे पुद्गलद्रव्यों के स्कंधों का अनेक भेदों में उत्पादन अन्य किन्हीं के द्वारा (प्रेरित) नहीं किया हुआ देखा गया (है), वैसे ही कर्मों के (उत्पादन को) जानो। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) (76) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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