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________________ 59. भावो जदि कम्मकदो अत्ता कम्मस्स होदि किध कत्ता। ण कुणदि अत्ता किंचि वि मुत्ता अण्णं सगं भावं।। भाव भावो जदि कम्मकदो यदि अत्ता होदि किध (भाव) 1/1 अव्यय [(कम्म)-(कद) भूकृ 1/1 अनि] (अत्त) 1/1 (कम्म) 6/1 (हो) व 3/1 अक अव्यय (कत्तु) 1/1 वि अव्यय (कुण) व 3/1 सक (अत्त) 1/1 अव्यय अव्यय (मुत्ता) संकृ अनि (अण्ण) 2/1 वि (सग) 2/1 वि (भाव) 2/1 (द्रव्य) कर्म द्वारा उत्पन्न किया गया आत्मा (द्रव्य) कर्म का होता है कैसे कर्ता नहीं करता है आत्मा कुछ कत्ता कुणदि अत्ता . किंचि भी मुत्ता अण्णं छोड़कर अन्य निजी भाव सगं भावं __ अन्वय- जदि भावो कम्मकदो अत्ता कम्मस्स कत्ता किध होदि अत्ता सगं भावं मुत्ता अण्णं किंचि वि ण कुणदि। अर्थ- यदि (पूर्व कथित औदयिकादि) (आत्मा का) भाव (द्रव्य) कर्म द्वारा उत्पन्न किया गया (है) (तो) (प्रश्न है कि) आत्मा (द्रव्य) कर्म का (या) (उससे उत्पन्न भाव का) कर्ता कैसे होगा? (क्योंकि) (जिन सिद्धान्त में कहा गया है कि) आत्मा निजी भाव को छोड़कर अन्य कुछ भी नहीं करता है। 1. प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमानकाल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (69)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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