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________________ 55. णेरइयतिरियमणुया देवा इदि णामसंजुदा पयडी। कुव्वंति सदो णासं असदो भावस्स उप्पाद।। णेरइयतिरियमणुया नारकी, तिर्यंच, मनुष्य देवा देव इस प्रकार नामों से युक्त णामसंजुदा पयडी [(णेरइय) वि-(तिरिय) वि- (मणुय) 1/2] (देवा) 1/2 अव्यय [(णाम) अ-(संजुद) भूक 1/2 अनि (पयडि) 1/2 (कुव्व) व 3/2 सक (सदो) 6/1 वि अनि (णास) 2/1 (असदो) 6/1 वि अनि (भाव) 6/1 (उप्पाद) 2/1 कुव्वंति सदो णासं असदो कर्म प्रकृतियाँ करती हैं विद्यमान का नाश अविद्यमान का पर्याय का भावस्स उप्पादं उत्पाद अन्वय- इदि णेरइयतिरियमणुया देवा णामसंजुदा पयडी सदो भावस्स णासं असदो उप्पादं कुव्वंति। अर्थ- इस प्रकार नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देव नामों से युक्त कर्म प्रकृतियाँ विद्यमान पर्याय का नाश (और) अविद्यमान (पर्याय) का उत्पाद करती पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (65)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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