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________________ 12. पज्जयविजुदं दव्वं दव्वविजुत्ता य पज्जया णत्थि। दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परूवेंति।। पज्जयविजुदं दव्वं दव्वविजुत्ता पज्जया [(पज्जय)-(विजुद) पर्याय-रहित भूकृ 1/1 अनि] (दव्व) 1/1 द्रव्य [(दव्व)-(विजुत्त) द्रव्य-रहित भूकृ 1/2 अनि] अव्यय और (पज्जय) 1/2 अव्यय नहीं है (दो) 6/2 वि दोनों के (अणण्णभूद) भूकृ 2/1 अनि अपृथक बने हुए (भाव) 2/1 भाव को (समण) 1/2 (परूव) व 3/2 सक प्रतिपादित करते हैं पर्यायें णत्थि दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा श्रमण परूवेंति अन्वय- पज्जयविजुदं दव्वं य दव्वविजुत्ता पज्जया णत्थि समणा दोण्हं अणण्णभूदं भावं परूवेंति। अर्थ- पर्याय-रहित द्रव्य (नहीं है) और द्रव्य-रहित पर्यायें नहीं है। श्रमण दोनों (द्रव्य और पर्याय) के अपृथक बने हुए भाव को प्रतिपादित करते हैं। (22) पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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