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________________ 5. जेसिं अस्थिसहाओ गुणेहि सह पज्जएहि विविहेहि। ते होंति अत्थिकाया णिप्पण्णं जेहि तइलोक्कं।। जेसिं अत्थिसहाओ गुणेहि सह पज्जएहि विविहेहि पर्यायों (ज) 6/2 सवि जिनका [(अत्थि) अ-(सहाअ) 1/1] अस्तित्व स्वभाव (गुण) 3/2 गुणों अव्यय सहित (पज्जअ) 3/2 (विविह) 3/2 वि नाना प्रकार के (त) 1/2 सवि (हो) व 3/2 अक होते हैं (अत्थिकाय) 1/2 अस्तिकाय (णिप्पण्ण) भूकृ 1/1 अनि । संपन्न (ज) 3/2 सवि जिनके द्वारा (तइलोक्क) 1/1 तीन लोक होति । अत्थिकाया णिप्पण्णं जेहि तइलोक्कं अन्वय- जेसिं विविहेहि गुणेहि पज्जएहि सह अत्थिसहाओ ते अत्थिकाया होंति जेहि तइलोक्कं णिप्पण्णं। ___ अर्थ- जिन (बहुप्रदेशी द्रव्यों) का नाना प्रकार के गुणों व पर्यायोंसहित अस्तित्व स्वभाव है, वे अस्तिकाय (बहुप्रदेशी अस्तित्ववाले) होते हैं, जिनके द्वारा तीन लोक संपन्न (है)। 1. 'सह' के योग में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (15)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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