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________________ 91. जीवा पुग्गलकाया धम्माधम्मा य लोगदोणण्णा। तत्तो अणण्णमण्णं आयासं अंतवदिरित्तं।। जीवा पुग्गलकाया धम्माधम्मा अव्यय लोगदोणण्णा (जीव) 1/2 जीव [(पुग्गल)-(काय) 1/2] पुद्गल-समूह [(धम्म)-(अधम्म) 1/2] धर्म, अधर्म द्रव्य और [(लोगदो)+(अणण्णा)] लोगदो (लोग) 5/1 लोक से पंचमीअर्थक 'दो' प्रत्यय अणण्णा (अणण्ण) 1/2 वि अभिन्न/अपृथक (त) 5/1 सवि उससे [(अण)+(अण्णं)+ (अण्णं)] अण (अ) = नहीं अण्णं (अण्ण) 1/1 वि अन्य अण्णं (अण्ण) 1/1 वि अन्य (आयास) 1/1 आकाश [(अंत)-(वदिरित्त) 1/1 वि] अंत से वियुक्त (रहित) तत्तो अणण्णमण्ण आयासं अंतवदिरित्तं अन्वय- जीवा पुग्गलकाया धम्माधम्मा य लोगदोणण्णा आयासं तत्तो अणण्णमण्णं अंतवदिरित्त। अर्थ- जीव, पुद्गलसमूह, धर्म और अधर्म द्रव्य लोक से अभिन्न/अपृथक (है)। (लोकवाला) आकाश (भी) उस (लोक) से अन्य नहीं (है), (किन्तु) (लोक से) अन्य (आकाश) (अलोकाकाश) अंत से वियुक्त (रहित) (है)। पंचास्तिकाय (खण्ड-1) द्रव्य-अधिकार (101)
SR No.002306
Book TitlePanchastikay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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