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________________ 110. कम्ममहीरुहमूलच्छेदसमत्थो सकीयपरिणामो। साहीणो समभावो आलुंछणमिदि समुद्दिट्ट।। कम्ममहीरुहमूलच्छेद-[(कम्म)-(मही)-(रुह) वि- कर्मरूपी भूमि समत्थो (मूल)-(च्छेद)- में उत्पन्न होनेवाले समत्थ) 1/1 वि] (दोषरूपी वृक्ष के)मूल का छेदन करने में समर्थ सकीयपरिणामो [(सकीय) वि निज का (परिणाम) 1/1] परिणाम साहीणो (साहीण) 1/1 वि स्वाधीन समभावो (समभाव) 1/1 वि समभाववाला आलुछणमिदि [(आलुछणं)+ (इदि)] आलुछणं (आलुछण) 1/1 आलुंछन इदि (अ) = शब्दस्वरूपद्योतक । (समुद्दिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि कहा गया समुद्दिढ़ अन्वय- सकीयपरिणामो साहीणो समभावो कम्ममहीरुहमूलच्छेदसमत्थो आलुछणमिदि समुद्दिटुं अर्थ- (चूँकि) निज (आत्म) का परिणाम स्वाधीन और समभाववाला (होता है) (इसलिए), (वह) (अष्ट) कर्मरूपी भूमि में उत्पन्न होनेवाले (दोषरूपी वृक्ष के) मूल का छेदन करने में समर्थ (है)। (यह) आलुछंण (उच्छेदन) कहा गया (है)। (48) नियमसार (खण्ड-2)
SR No.002305
Book TitleNiyamsara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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