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________________ 50. पुव्वुत्तसयलभावा परदव्वं परसहावमिदि हेयं । सगदव्वमुवादेयं अंतरतच्चं हवे · अप्पा ॥ पुव्वुत्तसयलभावा परदव्वं परसहावमिदि [(पुव्व)+ (उत्तसयलभावा)] [(पुव्व) वि-(उत्त) भूकृ अनि- पूर्व कथित सभी (सयल) वि-(भाव) 1/2] भाव (विभाव पर्यायें) (परदव्व) 1/1 परद्रव्य . [(परसहावं)+ (इदि)] परसहावं (परसहाव) 1/1 परस्वभाव इदि (अ) = इसलिए इसलिए (हेय) 1/1 वि त्यागने योग्य [(सगदव्वं)+(उवादेयं)] सगदव्वं (सगदव्व) 1/1 स्वद्रव्य उवादेयं (उवादेय) 1/1 वि उपादेय [(अंतर)-(तच्च) 1/1] अंतर (स्व) द्रव्य (हव) व 3/1 अक (अप्प) 1/1 आत्मा सगदव्वमुवादेयं अंतरतच्चं हवे अप्पा अन्वय-परदव्वं परसहावमिदि हेयं पुव्वुत्तसयलभावा सगदव्वमुवादेयं अप्पा अंतरतच्चं हवे । अर्थ- (आगम के अनुसार) परद्रव्य (और) परस्वभाव त्यागने योग्य (हैं)। (चूँकि) पूर्व कथित सभी भाव (विभाव पर्यायें हैं) इसलिए (त्यागी जानी चाहिये) । स्व द्रव्य उपादेय (है)। आत्मा अंतर (स्व) द्रव्य है । (इसलिए अंतर (स्व) द्रव्य आत्मा ही उपादेय है)। नोटः संपादक द्वारा अनूदित (62) नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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