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________________ 37. पोग्गलदव्वं मुत्तं मुत्तिविरहिया हवंति सेसाणि । चेदणभावो जीवो चेदणगुणवज्जिया सेसा ॥ पोग्गलदव्वं [(पोग्गल)-(दव्व) 1/1] पुद्गलद्रव्य मुत्तं (मुत्त) 1/1 वि . मूर्त मुत्तिविरहिया [(मुत्ति) वि-(विरहिय) मूर्तिरहित 1/2 वि हवंति (हव) व 3/2 अक होते हैं सेसाणि (सेस) 1/2 शेष चेदणभावो [(चेदण)-(भाव) 1/1 वि] चेतन-स्वभाववाला (जीव) 1/1 जीव चेदणगुणवज्जिया [(चेदण)-(गुण)- चेतना-गुण से रहित (वज्जिय) 1/2 वि सेसा (सेस) 1/2 वि शेष जीवो अन्वय- पोग्गलदव्वं मुत्तं सेसाणि मुत्तिविरहिया हवंति जीवो चेदणभावो सेसा चेदणगुणवज्जिया। अर्थ- पुद्गलद्रव्य मूर्त (इन्द्रिय ग्राह्य) (होता है) (और) शेष (द्रव्य) मूर्तिरहित (इन्द्रिय अग्राह्य) होते हैं। जीव (द्रव्य) चेतन-स्वभाववाला (होता है) (और) शेष (द्रव्य) चेतना-गुण से रहित (होते हैं)। (48) . नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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