SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10. जीवो ओगमओ ओगो णाणदंसणो होइ णाणुवओगो जीवो उवओगमओ उवओगो णाणदंसणो होइ । णाणुवओगो दुविहो सहावणाणं विहावणाणं ति ।। दुविहो सहावणाणं विहावा 1. (20) (जीव ) 1 / 1 जीव ( उवओगमअ) 1 / 1 वि उपयोगमय ( उवओग) 1 / 1 उपयोग [ ( णाण) - ( दंसण) 1 / 1 वि] ज्ञान और दर्शनरूप (हो) व 3/1 अक है [ ( णाण) + (उवओग)] [ ( णाण ) - ( उवओग) 1 / 1] (दुविह) 1/1 वि [ ( सहाव ) - ( णाण) 1 / 1] [(विहावणाणं) + (इति)] विहावणाणं [ ( विहाव ) - ( णाण) 1 / 1 ] इति (अ) = ज्ञान उपयोग दो प्रकार का स्वभावज्ञान अन्वय- जीवो उवओगमओ उवओगो णाणदंसणो होइ णाणुवओगो दुविहो सहावणाणं विहावणाणं ति । अर्थ - जीव उपयोगमय ( है ) । उपयोग ज्ञान और दर्शनरूप है। ज्ञान उपयोग दो प्रकार का ( है ) - स्वभावज्ञान (और) विभावज्ञान । प्राकृत - व्याकरण, पृष्ठ 3, ( 4 क) विभावज्ञान शब्दस्वरूपद्योतक नियमसार (खण्ड-1)
SR No.002304
Book TitleNiyamsara Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2015
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy