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________________ M 6. जिससे विद्या, कला पढ़ी/सीखी जाए, उसमें पंचमी होती है। जैसे - सो गुरुहे/गुरूहे (5/1) गायणकल (2/1) सिक्खइ/ आदि (वह गुरु से गाने की कला सीखता है।) दुगुच्छ (घृणा), विरम (हटना) और पमाय (भूल, असावधानी) तथा इनके समानार्थक शब्दों या क्रियाओं के साथ पंचमी होती है। जैसे - (i) सज्जणु (1/1) पावहे/पावहु (5/1) दुगुच्छइ/आदि (सज्जन पाप से घृणा करता है।) (ii) मुक्खु (1/1) अज्झयणहे/अज्झयणहु (5/1) विरमइ/ आदि (मूर्ख अध्ययन से हटता है।) (iii) तुहं (1/1) सज्झायहे/सज्झायाहु (5/1) पमायहि/आदि (तुम स्वाध्याय से प्रमाद करते हो।) उप्पज (उत्पन्न होना), पभव (उत्पन्न होना) क्रिया के योग में पंचमी विभक्ति होती है। जैसे- (i) खेत्तहे/खेत्तहु (5/1) धन्नु (1/1) उप्पज्जइ/आदि (खेत से धान उत्पन्न होता है।) (ii) लोभहे/लोभाहु (5/1) कुज्झ (1/1) पभवइ/आदि (लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है।) जिससे किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना की जाए, उसमें पंचमी होती है। जैसे - (i) धणहे/धणाहु (5/1) णाणु (1/1) गुरुतर (वि. 1/1) अत्थि। (धन से ज्ञान अच्छा है।) (ii) नरिदहे/नरिदहु (5/1) मंती/मंति (1/1) कुसलतरो (वि. - 1/1) अत्थि। (राजा से मंत्री अधिक कुशल है।) 8. 9. अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (47) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002301
Book TitleApbhramsa Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2007
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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