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________________ 67 शिष्य आचार्य जिनसेन ने बाकी की टीका पूर्ण की। यह टीका जयधवला के नाम से प्रसिद्ध है। यह टीका साठ हजार श्लोक प्रमाण है। कषायपाहुड भी षट्खण्डागम की तरह दिगंबर परंपरा में सर्वमान्य है। यह पाँचवें ज्ञान प्रवाद पूर्व की दशवी वस्तु के तृतीय पाहुड 'पेज्जदोसः' से लिया गया है, इसलिए इसको पेज्जदोष पाहुड भी कहा जाता है। पेज्ज का अर्थ प्रेय या राग है तथा दोष का अर्थ द्वेष है। इस ग्रंथ में क्रोध, मान, माया, लोभ, रूप कषाय, राग, द्वेष उनकी प्रकृति, स्थिति, अनुभाग प्रदेश आदि का निरूपण किया गया है। तिलोयपण्णत्ति (तिलोयप्रज्ञप्ति) आचार्य यतिवृषभ ने तिलोयपण्णत्ति की रचना की। यह प्राकृत भाषा में लिखा गया प्राचीन ग्रंथ है। जो आठ हजार (८०००) श्लोक प्रमाण है। इसमें तीनों लोकों से संबंधित विषयों का विवेचन है। दिगंबर परंपरा में प्राचीनतम श्रुतांग के अर्न्तगत माना जाता है। धवला टीका में इस ग्रंथ के अनेक उद्धरण आये हैं। इसमें भूगोल, खगोल, जैन सिद्धांत पुराण एवं इतिहास आदि पर प्रकाश डाला गया है। समाज, राज्य शासन, लोक व्यवहार आदि विषयों की यथा प्रसंग चर्चा हुई है। आचार्य कुंदकुंद के प्रमुख ग्रंथ आचार्य कुंदकुंद का दिगंबर परंपरा में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। गौतम गणधर के पश्चात् इनका नाम बडे आदर के साथ लिया जाता है। पद्मनंदी, वक्रग्रीव, एलाचार्य तथा गृद्धपिच्छ के नाम से भी ये प्रसिद्ध हैं, किंतु इनका वास्तविक नाम पद्मनंदी था। ये आंध्रप्रदेश के अंतर्गत कोंडकुंड के निवासी थे। जिससे इनका नाम कुंदकुंद पडा ऐसा माना जाता है। . आचार्य कुंदकुंद के समय के विषय में कोई निश्चित प्रमाण मालूम नहीं होता। कोई विद्वान उनका समय प्रथम शताब्दी के आसपास मानते हैं। कईओं के मतानुसार उनकी तीसरी चौथी शताब्दी मानी जाती है। आचार्य कुंदकुंद ने प्राकृत में अनेक ग्रंथ रचे। जिनमें पंचास्तिकाय, प्रवचनसार तथा समयसार बहुत प्रसिद्ध हैं। ये द्रव्यार्थिक नय प्रधान ग्रंथ हैं। इनमें सूत्र निश्चय नय से पदार्थों का प्रतिपादन किया है। पंचास्तिकाय __पंचास्तिकाय में धर्म, अधर्म, आकाश, जीव और पुद्गल इन पांच अस्तिकायों का वर्णन है। यह दो श्रुत स्कंधों में विभाजित है। इसमें १७३ गाथायें हैं।
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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