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________________ नाम पान क्र. ८६ ९४ ९७ ९९ १०१ १०२ १०३ १०३ अनु क्र. १३२) नामस्मरण १३३) नवकार महामंत्र का महत्त्व १३४) भाव मंगल श्री नवकार १३५) नवकार मंत्र स्वरुप मंत्र और विश्व का उत्तम मंत्र १३६) महामंत्र का उपकार १३७) पंच परमेष्ठि में तीन तत्व १३८) भारतीय विद्याओं में मंत्रशास्त्र १३९) मंत्र की परिभाषा १४०) मंत्र के भेद १४१) मंत्र जप की उपयोगिता १४२) मंत्र जप के दो रुप - लौकिक और अध्यात्मिक १४३) मंत्र और अन्तर्जागरण १४४) नवकार मंत्र में निर्विकल्प आस्था १४५) नवकार मंत्र की तीन शक्तियाँ १४६) मंत्र ध्वनि- तरंग एवं प्रकाश १४७) शब्द ब्रह्म रुप मंत्र १४८) नवकार की महिमा : श्लोक १४९) अभयकुमार चरित में नवकार महिमा १५०) सुकृत सागर में नवकार १५१) पंच नमस्कृति दीपक में परमेष्ठि मंत्र १५२) नवकार मंत्र का प्रभाव १५३) नवकार मंत्र शांति का स्रोत १५४) नवकार महामंत्र से ज्ञातृत्व भाव १५५) द्रव्यात्मक पर्यायात्मक दृष्टि से नवकार का निरुपण १५६) नवकार मंत्र और जप अष्ट शुद्धियाँ १५७) द्रव्यशुद्धी १०५ १०५ १०६ १०७ १०८ ११० ११२ ११४ ११६ ११७ ११८ ११९ ११९
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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