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________________ २४ । आगम के आलोक में - ये बुधजनजी वे ही हैं, जिन्होंने सबसे पहले छहढाला नामक कृति लिखी थी। जिसका उल्लेख पण्डित दौलतरामजी ने अपने छहढाला की प्रशस्ति में किया है। बुधजनजी स्वयं लिखते हैं - "देख गुमानीराम का, वचन रूप सुप्रबन्ध । लघुमति ता संकोचि के, रचै सु दोहा छन्द ॥ . पिंगल व्याकरणादि कुछ, लखो नहीं मति बाल। कंठ राखने के लिए, रचो बालवत ख्याल ॥ गुमानीरामजी का गद्य रूप ग्रन्थ देखकर मुझ अल्पबुद्धि ने बड़े ही संकोच के साथ दोहों (छन्दों) की रचना की है। व्याकरण, छन्द आदि मैंने कुछ नहीं देखे - ऐसे बालबुद्धि मैंने कंठस्थ रखने की सुविधा को ख्याल में रखकर बालबुद्धि से ये छन्द बनाये हैं।" ध्यान रहे इसमें सभी छन्द दोहा नहीं हैं। दोहा शब्द का प्रयोग छन्द के अर्थ में हुआ है। अब तक जीवन में यह होता था कि संयोग हमें छोड़कर चले जाते थे और अब मरण में संयोगों को छोड़कर हम जा रहे हैं। जीवन में हम जहाँ के तहाँ रहते हैं और स्त्री-पुत्रादि संयोग हमें छोड़कर अन्यत्र जाते हैं तथा मरण में स्त्री-पुत्रादि सभी संयोग अपने स्थान पर रहते हैं और हम उन्हें छोड़कर चले जाते हैं। ___ बात तो एकसी ही है; तथापि अन्तर यह है कि जीवन में वे सभी एक साथ हमें नहीं छोड़ते थे; एक जाता है तो एक आता भी है, मातापिता जाते हैं तो पुत्र-पुत्रियाँ आती हैं। वियोग का दुख तो तब भी होता ही है, पर एक साथ नहीं, एक-एक का धीरे-धीरे। ___ पर मरण में सभी संयोग एक साथ छूटते हैं; इसलिये बात कुछ अलग हो जाती है। १. मृत्यु महोत्सव, पृष्ठ-१२०
SR No.002296
Book TitleSamadhimaran Ya Sallekhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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