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________________ १४ आगम के आलोक में - (३) प्रतिमा - धारियों और आर्जिकाओं के मरण को बाल पण्डितमरण कहते हैं । (४) मुनिराजों के मरण को पण्डितमरण कहते हैं। (५) अरिहंतों के निर्वाण को पण्डित - पण्डितमरण कहते हैं। गुणस्थान परिपाटी के अनुसार प्रथम गुणस्थानवालों का मरण बाल- बालमरण है । चतुर्थ गुणस्थानवालों का मरण बालमरण है। पंचम गुणस्थानवालों का मरण बाल पण्डितमरण है । छठवें से ग्यारहवें गुणस्थानवालों का मरण पण्डितमरण है और तेरहवें - चौदहवें गुणस्थान वालों का निर्वाण पण्डित - पण्डितमरण कहा जाता है । प्रस्तुत कृति में उक्त पाँच मरणों में मात्र दूसरे और तीसरे मरण को अर्थात् चौथे और पाँचवें गुणस्थानवालों के समाधिमरण या सल्लेखना को विषय बनाया गया है । अतः हम कह सकते हैं कि हमारी इस कृति का विषय मात्र अव्रती और अणुव्रती सम्यग्दृष्टियों की सल्लेखना है। ध्यान रहे बारह व्रतों में अतिचारों की चर्चा के साथ ही सल्लेखना के अतिचार भी गिनाये हैं । यह भी सिद्ध करता है कि यह सल्लेखना नामक व्रत मुख्य रूप से व्रती श्रावकों का है । यह व्रत धारण करने वाले आत्मार्थी भाई बहिनों को उनकी कमजोरी के कारण जो अल्प दोष लग जाते हैं; उन्हें अतिचार कहते हैं। सल्लेखना व्रत में लगने वाले अतिचार इसप्रकार हैं | - - “जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबंधनिदानानि ' जीविताशंसा, मरणाशंसा, मित्रानुराग, सुखानुबंध और निदान - ये पाँच सल्लेखना व्रत के अतिचार हैं।" १. जीविताशंसा - सल्लेखना लेकर जीने की इच्छा रखना, जीविताशंसा नामक प्रथम अतिचार है । १. तत्त्वार्थसूत्र अध्याय-७, सूत्र ३७
SR No.002296
Book TitleSamadhimaran Ya Sallekhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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