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________________ रसोईघर के कामों में हाथ बंटाते-बंटाते रामू एक सिद्धहस्त रसोईया बन गया था। यह तो उसकी काबिलियत थी कि रसोईघर पर वह एकछत्र काबिज हो गया था। उसके रहते कभी किसी को वहाँ जाने की जरूरत ही न पड़ती। शायद उसके सिवा कोई और जानता भी न था कि चाय में किसे कितनी चीनी चाहिए व सब्जी में किसे कितनी मिर्ची या कि किसका फुल्का कितना सिकना चाहिए? आलम तो ये हो चला था कि जब कभी यदा-कदा उसे अपने गाँव जाने का मन हो आता तो मानो घर-परिवार पर संकट के बादल से छा जाते। सबके कारण अपने-अपने थे, पर उसके जाने की खबर सुनकर सांप सभी को सूंघ जाता था। ____ अम्मा को लगता था कि दिन का अधिकांश समय अब रसोईघर में ही बीतेगा। मुझे चिन्ता होने लगती कि शायद दिन में दो-तीन कप चाय की कटौती तो हो ही जायेगी। समकित जानता था कि अब समय पर स्कूल पहुँचने के लिए उसे विशेष सावधानी रखनी होगी, तो सुरभित को चिन्ता थी अपनी पसन्द का भोजन न मिल पाने की; क्योंकि माँ का जोर स्वादिष्ट खाने की अपेक्षा पौष्टिक व स्वास्थ्यवर्धक भोजन पर अधिक रहता था। वह साल में मुश्किल से 15-20 दिन के लिए गांव जाता था और एक खुली जेल के आजन्म कैदी की भांति पैरोल की अवधि खत्म होते ही फिर वापिस अपने उसी रसोई घर में आकर कैद हो जाता था, लगभग वर्ष भर के लिए। इसीतरह वर्षों बीत गए, कभी किसी ने गौर ही नहीं किया कि कब वह शादी कर आया व कब उसके बाल-बच्चे हो गये और माता-पिता मर-खप गये। उसका और सबकुछ हमारा अपना था, सिवाय उसकी उन व्यक्तिगत खुशियों और गमों के तथा उसकी पगार; लगभग 1000 रुपये माहवार के। मैं गवाह हूँ कि किसतरह उसका बचपन बड़ी तेजी से झटपट गायब अन्तर्द्वन्द/16 -
SR No.002294
Book TitleAantardwand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherHukamchand Bharilla Charitable Trust
Publication Year2011
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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