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________________ ४० तरंगवती "सपने में मैंने एक विविध धातुओं से चित्रविचित्र, दिव्य ओषधियों एवं देवलोक के वृक्षों से सुशोभित, गगनस्पर्शी ऊँचे एक रम्य पर्वत को देखा । मैं उसके पास गई और उसके गगनचुंबी शिखर पर चढ़ी । परन्तु इतने में तो मैं जाग पड़ी : तो वह स्वप्न मुझे फलप्रद कैसा होगा ?" स्वप्नफल अतः पिताजी स्वप्नशास्त्र के अपने ज्ञान को आधार लेकर कहने लगे, "बेटी तुम्हारा वह स्वप्न मांगलिक एवं धन्य है । स्वप्न में स्त्री-पुरुषों की अंतरात्मा उनके भावि लाभालाभ, सुख-दुःख और जीवन-मृत्यु को छूती है। . मांस, मत्स्य, रक्त टपकते घाव, दारुण विलाप, आग में प्रज्वलित होना, घायल होना, हाथी, बैल, भवन, पर्वत अथवा द्रवते वृक्ष पर चढना, समुद्र या नदी तैरकर पार करना, आदि के स्वप्न दुःख से मुक्ति के सूचक तुम समझो। पुंलिंग नामवाली वस्तु की प्राप्ति से पुंल्लिंग नामवाले द्रव्य का लाभ होता है । ऐसे नामवाली चीज नष्ट हो जाती दिखाई पड़े तो ऐसे ही नामवाली वस्तु का नाश होता है। स्त्रीलिंग नामवाली वस्तु की प्राप्ति से ऐसे ही नामवाला द्रव्य मिलता है। ऐसे नामवाली वस्तु अदृश्य हो जाती देखी जाय तो ऐसे ही नामवाली वस्तु लुप्त हो जाती है। पूर्वकृत शुभकर्म या पापकर्म का जो फल जिन्हें मिलनेवाला होता है उस फलको उनकी अंतरात्मा स्वप्नदर्शन द्वारा सूचित करती है। रात्री के प्रारंभ में आनेवाला स्वप्न छः महीनों के बाद, मध्यरात्री को आनेवाला तीन मास के बाद, भोर को आनेवाला डेढ मास के बाद और सवेरे आनेवाला स्वप्न तुरंत ही फल देता है। निश्चिंत एवं घोड़े बेचकर सोनेवालों के स्वप्न फलप्रद होते हैं। इन स्वप्नों के सिवा के स्वप्न फल दें या न भी दें। ___ पर्वतशिखर के आरोहण का सपना जो कन्या देखेगी वह उत्तम रूपगुणवाला पति प्राप्त करती है जबकि दूसरों को ऐसे सपने से धनलाभ होता है । अतः हे पुत्री ! एक सप्ताह में तुम उस अतिशय आनंद का प्रसंग प्राप्त करोगी। साथ
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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