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________________ तरंगवती चित्रपट का अंकन इसके बाद हे गृहस्वामिनी ! विरह दुःख से संतप्त मैंने हृदय के शोक से विश्राम पाने के हेतु चित्रकर्म के योग्य एक पट्ट तैयार करवाया । मजबूत बंधन से बंधी, अनुकूल नाप की बारीक बालों की मसृण सुन्दर तूलिकाएँ बनवाई। वे दोनों सिरों पर तीक्ष्ण नोकवाली, उपस्कृत, सप्रमाण, महीन, स्निग्ध रेखांकन करनेवाली और हाथ में उत्साह-प्रेरक थीं। इनके उपयोग से उस चित्रपट्ट पर मैंने चक्रवाकी के भव में मेरे प्रियतम के साथ जो कुछ अनुभव किया था वह सब अंकित किया जिस प्रकार हम खेलते एवं विहरते; जिस स्थिति में मेरा सहचर बींध गया एवं मरा; व्याध ने उसे अग्निदाह दिया; और उसके पीछे जिस रीति से मैंने अनुमरण किया । भागीरथी का प्रवाह, समुद्र-सी लहरोंवाली गंगा और उसके तट पर रथांग नाम के विहग-अर्थात् - चक्रवाक, हाथी, मजबूत एवं धनुष्यधारी युवा व्याध - वह सब क्रम पूर्वक चित्रपट में तूलिका से अंकित किया । इसके अलावा पद्मसरोवार, अनेक प्रकार के वृक्षों से बनी घनी एवं दारुण अटवी और हजारों कमलोंवाला ऋतुकाल आदि सब चित्रित किया । मैं चित्रगत कुंकमवर्ण के मेरे उस मनोरम चक्रवाक को अनन्य चित्त से देखने में तल्लीन हो गई। कौमुदीमहोत्सव उन दिनों विविध गुण-नियमोंवाली, पवित्र शरदपूर्णिमा निकट ही थी। धर्म जैसी कल्याणमयी और अधर्म की प्रतिबंधक उस समय घोषणा की गई। लोगों ने इस व्रताचरण के निमित्त उपवास एवं दान का आरंभ किया । इतने में हे गृहस्वामिनी ! द्विजों की दुर्दशा निवारक एवं धर्मप्रवृत्ति की कारक शरदपूनम का दिन क्रमशः आ गया । अम्मा और पिताजीने वर्षाकाल के अतिचार का शोधन किया। मैंने भी पिताजी की इच्छानुसार उपवास, प्रतिक्रमण एवं पारने किये । पर्व के दिन दोपहर मैं छत पर गई और स्वर्ग के विमानों-सी शोभा धारण की हुई नगरी को देखने लगी । कलाकारों ने कौशल से चित्रित दूध जैसे धवल,
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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