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________________ पूर्वभव का वृत्तांत . चक्रवाक-मिथुन गंगानदी मध्यदेश के मित्र-सा अंग नामक देश था : धान्य से भरापूरा और शत्रुआक्रमण, चोर एवं अकाल से मुक्त ।। उसकी राजधानी थी चंपा - रमणीय वनराजि और उद्यानों से सजी हुई, सभी उत्तम पुरियों के गुणों से समृद्ध वह इस प्रकार सचमुच ही अद्वितीय पुरी थी। जिसके दोनों तट स्निग्ध एवं अनगिनत गाँव, नगर और जनपदों से खचाखच थे ऐसी पक्षियों के झुंडों से ढकी, अंगदेश की रमणीय नदी गंगा वहाँ से होकर बहती थी। कादंब पक्षीरूप कुंडल एवं हंसरूप मेखलाधृत, चक्रवाकरूप स्तनयुगल से शोभित, सागरप्रिया गंगा फेन का वस्त्रपरिधान कर गमन कर रही थी। . उसके तट के वृक्ष वनगजों की दंतशल के प्रहारों से अंकित थे उसके तटप्रदेश में जंगली भैंसों, बाघों, तेंदुओं और लकडबघ्यों का बडी तादाद में मुकाम था ___उस नदी के तट पर परिपक्व कलमी चावल की फसल जैसी ललाई लिये हुए चक्रवाकयुगलों के यूथ सुंदर लगते थे । वे अपनी-अपनी जोडी के साथी पर सदा परस्पर अनुरक्त रहते ? वहाँ धृतराष्ट्र, सारस, जलकूकडी, कादंब, हंस, टिटहरे और ऐसे अन्य पक्षीयूथ निर्भय होकर स्वच्छंद क्रीडा करते थे। चक्रवाकी हे सखी, वहाँ मैं पूर्वभव में एक चक्रवाकी थी। कर्पूरचूर्ण मिलाए कपिले जैसा हलका रतनारा मेरे शरीर का वर्ण था । उस पक्षीभव में उस अवस्था के अनुरूप मैं प्रचुर सुखसम्मान में आसक्त होने के कारण उससे उत्तर के मनुष्यभव का मुझे स्मरण होता था। संसार में सब योनियों के जीवों को, यदि वे सुखसंपत्ति से मोहित हों तो उन्हें पूर्वजन्म की स्मृति आया करती है। . जिसमें सुख-चैन से घूमना-फिरना था, वांछित वस्तु प्राप्त करने में
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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