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________________ २० . तरंगवती हंसों के विलाप से वह मानो रो रहा था। पवन से डोलायमान कमलों से वह जैसे सविलास अग्रहस्त के अभिनयसह नृत्य करता था । . - दर्पमुखर टिटहरे, क्रीडारत बतख और हर्षभरे धृतराष्ट्रों के कारण उसके दोनों तटोने श्वेत वर्ण धारण कर लिया था । भ्रमरों से क्षुब्ध मध्य भागवाले कमल, बीच में इन्द्रनील जडे हुए सुवर्णपात्र समान सुशोभित थे। उन पर आसीन पिंडे की तरह लपेटे क्षौम वस्त्र जैसे धवल और शरदऋतु से पाये गुणसमूहवाले हंस सरोवर के अट्टहास-से जान पड़ते थे। केसरलिप्त मेरे पयोधर जैसी शोभावाले, प्रकृति से ही रक्तिम, प्रिया के साथ जिनका विप्रयोग ठना हुआ है ऐसे चक्रवाक मैंने देखे । पद्मिनी के. पत्तों पर बैठे हुए कुछ चक्रवाक हरित मणिजटित फर्श पर पड़े कनेरपुष्प के पुंज-जैसी शोभा दे रहे थे। ईर्ष्या एवं अरोष सहचरी के संग में अनुरक्त, मनशिल-समान रतनारे चक्रवाक मैंने वहाँ देखे । स्वसहचरी के संग पद्मिनीपत्रों के मध्य क्रीडारत चक्रवाक, मरकतमणि के फर्श पर लुढ़कते रत्नकलश-सी शोभा धारण कर रहे थे। मूर्छ सरोवर के अलंकार समान, गोरोचना जैसी सुर्शीवाले उन चक्रवाकों में मेरी दृष्टि कुछ अधिक रम गई । हे गृहस्वामिनी, बांधवजन जैसे उन चक्रवाकों को वहाँ देख मेरे पूर्वजों का मुझे स्मरण हो आया और शोक से मूच्छित होकर मैं लुढक गई। होश आने पर मेरा हृदय अतिशय शोक से भर गया और मैं बहुत आँसू बहाती हुई मनोवेदना प्रगट करने लगी। मैं रोती-रोती अपनी दासी को कमलपत्र में पानी लाकर मेरे हृदयप्रदेश तथा आँसू पोंछती देखती रही । तत्पश्चात् हे गृहस्वामिनी, मैं वहाँ से उठकर, हरे पत्तेवाले पद्मिनीके झुंड समान, सरोवरतट पर स्थितताजा कदलीमंडप में गई। वहां गगनतल समान अत्यंत
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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