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________________ १७ तरंगवती मन हो ऐसी तीव्र छटपटाहट पैदा होने लगी । अप्सरा - सी सौन्दर्यवती युवतियों के में भी मेरा सौन्दर्य देख ऐसा रूप प्राप्त करने के मनोरथ जागे । मेरा रूपलावण्य, सौकामार्य और चेष्टाओं में रमणीय शील के दर्शन करके राजपथ पर चल रहे सब लोग मानो अन्यमनस्क हो गए । विशाल राजपथ पर से जब हम गुजर रहे थे उस समय वहाँ फैल गई सुगंध से लोग आश्चर्यचकित हो गए । जब हम नगर से बाहर निकल गईं तब लोगों में हो रही इस प्रकार की बातें सुनकर मेरी दासियाँ हमारे पीछे दौडती हुई आकर मुझे कह गई । इस प्रकार उद्यान में पहुँचकर महिलाएँ वाहनों से उतरी । रक्षकगण को उद्यान के समीप के स्थान में ठहराया । उद्यानदर्शन दो सखियों के साथ मैं भी गाडी से उतरी और अन्य महिलाओं के साथ मैंने भी उस सुंदर उद्यान में प्रवेश किया । उद्यान का परकोटा और द्वार उत्तुंग एवं श्वेत थे । वह पुष्पित तरुवरों से भरपूर था । नंदनवन में जिस प्रकार अप्सराएँ विहरती हैं उसी प्रकार उस उद्यान में महिलाएँ विहरने लगीं । 1 उस उपवन को निहारती हुई वे पर्णगुच्छों से सभर सौन्दर्यंधाम समान वृक्षों से पुष्पगुच्छ चुनचुनकर लेने लगीं। उसी समय अम्माने कहा, "चलो, चलो, हम सप्तपर्ण को देखें; कुँअरी ने उसके फूल पर से सूचित किया था न, कि वह सरोवर के किनारे होना चाहिए।" अतः वह युवतीसमूह अम्मा के पीछे धीमी गति से आगे बढा और उस सप्तपर्ण वृक्ष को देखा । मैं भी अपनी धाव और सारसिका चेटी के साथ - संगाथ में सैकडों दर्शनीय, मनमोहक वस्तुओं से आकृष्ट होकर, वह सुहावना उद्यान निहारने लगीशरदऋतु ने अपने गुणसर्वस्व के साथ वहाँ अवतरण किया होने के कारण और अनेकविध उत्तम पुष्पों से सौन्दर्यसमृद्ध बना हुआ वह उद्यान सब प्रेक्षकों को नयनरम्य लग रहा था । हजारों पक्षियों का श्रवणमधुर कलरव सुनती हुई मैं पुष्पपराग मैं रंजित मधुकरी-सी भ्रमण करने लगी । वहाँ वर्षाऋतु बीतने पर शरद के आगमन के कारण जिसका पिच्छकलांप -
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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