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________________ तरंगवती समाप्त हुई है दिनभर की प्रवृत्ति, प्राप्त हुई है चक्षुओं को विषय-निवृत्ति, जिसके कारण हो जाती है कर्म से निवृत्ति और निद्रा की उत्पत्ति ऐसी आ पहुँची रात्री। 'अंधियारे को मिटाता दीपक निकट में रख मैं शय्या में सो गई और वह चाँदनी छिटकी मेरी रात सुख से बीती । वनभोजन समारंभ मैंने हाथ-पैर और मुंह धोये, अरहंतों और साधुओं को वंदन किया, लघु प्रतिक्रमण किया और मैं वनभोजन समारंभ में जाने को उत्सुक हो गई । वनभोजनउत्सव में जाने को अधीर युवतियों एवं पुत्रवधुओंने भी 'किसी प्रकार न कटती. थी' ऐसा कहकर बीती रात को बहुत भलाबुरा कहा था। कितनी कल वनभोजन उत्सव में जाएंगी, तो वहाँ क्या-क्या देखेंगी, नहाने का आनंद कैसे लूटेंगी' इत्यादि मनोरथों की आपस में बातें करने में सारी रात जागरण में बिताई थी। . प्रबंध रसोइये, रक्षक, कारिंदे, कारभारी एवं परिचारक भोजन के प्रबंध के लिए सबसे पहले उद्यान पहुँच गये । तब एकाएक गगनमार्ग का पथिक, पूर्वदिशा का वदनकमल विकसित करनेवाला, जपाकुसुम-सा रक्तिम् दिनकर निकला । महिलाओं ने साथ में रंगबिरंगी, विभिन्न, बहुमूल्य पट्ट, क्षौम, कौशिक एवं चीनांशुक वस्त्र लिये, कसबियोंने कलाकौशल्य से बनाये हुए सोना, मोती और रत्नों के आभूषण लिये और सौन्दर्यवर्धक, सौभाग्यसमर्पक यौवनउद्दीपक प्रसाधन लिये तत्पश्चात् रिश्तेदारों की सब तिमंत्रित महिलाएँ आ जाने पर अम्मांने वनभोजन उत्सव के लिए निकलने की तैयारियाँ आरंभ की और शुभ मुहूर्त में सारी सामग्री समेत उन्होंने उनके साथ प्रयाण किया । तुरंत ही अम्मां के पीछे पीछे वासभवन का मार्ग आभूषणों की झनकार से भर देता युवतीसमुदाय चलने . लगा । तरुणियों के नूपुर की रुनकझनक, रत्नजटित स्वर्णमेखला की खनखनाहट और सिकड़ियों की किकिणियों की झंकार - इन सबका रम्य गुंज उठा । मन्मथ के उत्सव की शहनाई-सी उनके आभूषणों की नफीरी मानो लोगों को मार्ग में :
SR No.002293
Book TitleTarangvati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages140
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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