SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 13 दोहा ११ से १२ तक अन्यत्व भावना दोहा १३ से १४ तक अशुचि भावना दोहा १५ से १६ तक आश्रव भावना दोहा १७ से १८ तक संवर भावना दोहा १९ में निर्जरा का वर्णन है तथा दोहा २० में लोक स्वभाव तथा दोहा २१ में बोधिदुर्लभ तथा दोहा २२ से ४४ तक धर्मभावना का वर्णन है । ४५ वाँ दोहा उपसंहार रूप है । 'तत्त्वार्थसूत्र' के अनुसार बारह भावनाओं का क्रम इस प्रकार है - अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभत्व और धर्मस्वाख्यातत्व - इनका अनुचिन्तन ।' इस तरह लक्ष्मीचंद की कृति में इसी परंपरा का अनुसरण है । कर्तृत्व-रचनासमय - मो. द. देसाई कृत 'जैन गूर्जर कविओ', (संशोधित, संवर्धित द्वितीय आवृत्ति, सम्पादक जयन्त कोठारी, भाग २, १९९७) इस ग्रंथ में दिगंबर सम्प्रदाय के सरस्वती गच्छ में हुए कवि सुमतिकीर्तिसूरि की दो कृतियाँ – 'धर्मपरीक्षारास' (रचना वि.सं. १६२५) और ' त्रेलोक्यसार - चोपाई' (रचना वि.सं. १६२७) का परिचय दिया गया है (पृष्ठ १४४ - १४५) । उनमें सूमतिकीर्तिसूरि की गुरुपरंपरा इस प्रकार दी गई है विद्यानंदि, मल्लिभूषण, लक्ष्मीचन्द्र, वीरचंद, ज्ञानभूषण, प्रभाचंद्र और सुमतिकीर्ति । इस परंपरा में लक्ष्मीचंद्रमुनि का नाम है। 'बारहक्खर कक्क' में उसके कर्ता महाचंद्र मुनि ने अपने गुरु का नाम वीरचंद बताया है । इससे हम मान सकते हैं कि सुमतिकीर्तिसूरि ने अपनी गुरुपरंपरा में जो वीरचंद मुनि का नाम दिया है वह वीरचंद और महाचंद्रमुनि का गुरु वीरचंद • दोनों एक ही हो और जो लक्ष्मीचंद्र का नामनिर्देश किया है वो ही 'अणुपेहा' के कर्ता हो । १. तत्त्वार्थसूत्र, पृ. २११
SR No.002291
Book TitleAnupeha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1998
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy