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________________ चौंतीस अतिशयों से युक्त, अष्ट महा प्रातिहार्यों से परिपूर्ण, देवों ने जिनके लिए समवसरण को रचना की है, ऐसे हे अरिहंत ! मुझे आपकी शरण प्राप्त हो । चउविहकसायचत्ता, चउवयरणा चउप्पयारधम्मकहा । चउगइ दुहनिद्दलणा, अरहंता मज्झ ते सरणं ।। चार प्रकार के कषायों से मुक्त, चतुर्मुख, चार प्रकार के धर्म का कथन करने वाले, चारों गतियों के दुःखों को दलने वाले, ऐसे हे अरिहंत ! मुझे आपकी शरण प्राप्त हो । जे अट्ठकम्ममुक्का, वरकेवलनाणमुरिणअपरमत्था । अट्ठमयट्ठारगरहिया, अरहंता मज्झ ते सरणं ॥ जो पाठों कर्मों से मुक्त हैं, श्रेष्ठ केवलज्ञान से परमार्थ को जानने वाले हैं, अष्ट प्रकार के मदस्थानों से रहित हैं, ऐसे हे अरिहंत भगवन्त ! मुझे आपकी शरण प्राप्त हो । भवखित्त अरुहंता, भावारिप्पहरणणे अरिहंता । ते तिजगपूरिणज्जा, अरहंता मज्झ ते सरणं ॥ भवरूपी क्षेत्र में जिन्हें उगना नहीं अर्थात् संसार में जन्म लेना नहीं, भावरूपी शत्रों को हनन करने की योग्यता वाले, तीन लोक में पूजनीय, ऐसे हे अरिहंत ! मुझे आपकी शरण प्राप्त हो । श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१८
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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