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________________ [ अनुष्टुब्-वृत्तम् ] अपायापगमो ज्ञानं, पूजा वचनमेव च । श्रीमत्तीर्थकृतां नित्यं, सर्वेभ्योऽप्यतिशेरते ॥ ३॥ [ उपजातिवृत्तम् ] उप्पन्न - सन्नारण - महोमयागं, सप्पा डिहेरासरण - संठियारणं । सह सरणारदिय सज्जरणारणं, नमो नमो होउ सयाजिरगागं ॥ ४ ॥ जियंतरंगारिगणे सुनाणे, सप्पाडिहेराइसयप्पहाणे । संदेहसंदोहरयं हरते, भाएह निच्चपि जिणेरिहंते ॥ ५ ॥ श्री अरिहंतपद की पहचान देव, गुरु और धर्म इन तीनों को अपने में समाहित करने वाले श्रीसिद्धचक्र - नवपद में श्रीअरिहन्तपद प्रथम स्थान में विभूषित है । अरिहन्त बनने वाली आत्मायें अपने पूर्व भवों में सम्यक्त्व प्राप्तकर परिमित भवों की मर्यादा अंकित करती हैं अर्थात् अपना संसार सीमित कर लेती हैं । अरिहन्त श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन - १४
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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