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________________ मन्त्र-ॐ ह्रीं श्रीं परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय फलं यजामहे स्वाहा । ॥ अष्टप्रकारी पूजा समाप्ता ।। अष्ट प्रकारी पूजा करके लूण उतारने के बाद आरती तथा मंगल दीवा उतारना। लूण उतारने के दोहे लूण उतारो जिनवर अंगे, निर्मल जलधारा मन रंगे । लू. १ । जिम जिम तड तड लूगज फूटे, तिम तिम अशुभ कर्मबंध त्रुटे ।लू.२। नयण सलूणां श्री जिनजीनां, अनुपम रूप दया रस भीनां । लू. ३ । रूप सलूणु जिनजीनु दीसे, लाज्यु लूण ते जलमां पेसे । लू. ४ । त्रण प्रदक्षिणा देइ जलधारा, जलण खेपवीये लूण उदारा । लू. ५ । जे जिन ऊपर दुमणो प्राणी, ते एम थाजो लूण ज्यु प्राणी । लू. ६ । अगर कृष्णागरु कुदरु सुगंधे, धूप करी जे विविध प्रबन्धे । लू. ७ । । नवपदजी की आरती ।। जय जय भारती, नवपद तेरी। प्राश फली सब, आज हमेरी ॥ जय० ॥ पहले पद, अरिहंत ने ध्यावो। जनम-जनम का पाप गमावो ॥ जय० ॥ बीजे सिद्ध बुद्ध ध्यान लगावो। सुर नरनारी मिल गुरण गावो ॥ जय० ॥ त्रीजे सूरि शासन शोभावे । चोथे पाठक भणे भरणावे ॥ जय० ॥ धर्म सेवन में साधु शरा। दर्शन ज्ञान संयम तप पूरा ॥ जय० ॥ सकल देव गुरु धर्म ने सेवो । चउगति चरण अनुपम मेवो ।। जय० ॥ नवपद सेवो भवि भावे । ऋद्धि सिद्धि सब रंग भर पावे ॥ जय० ॥ उज्जैन नगरे श्री श्रीपाले। सेव्या सह मयणा त्रिकाले ॥ जय० ॥ जय जय मंगल जय जग बोले । नवपद चन्द्र प्रसाद अमोले ॥ जय० ॥ इति. ( 73 )
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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