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________________ सिद्ध का अर्थ है परिपूर्ण । जो संसार के सब प्रकार , के सुखों और दुःखों से विभावदशा और परपरिणति से तथा राग-द्वेषादिक रिपुत्रों से मुक्त होकर, स्वभाव दशा और स्वपरिणति को प्राप्त होते हैं, वे सिद्ध, बुद्ध, निरंजननिराकार कहलाते हैं और ज्योतिस्वरूप भी कहलाते हैं । सिद्धभगवन्त के आठ गुण श्रीसिद्धभगवन्त ज्ञानावरणीयादि चार घनघाति और चार घनघाति कर्मों का सर्वथा क्षय कर के सम्पूर्णरूपेरण आठ गुणों से समलंकृत सिद्धात्मा - मुक्तात्मा हैं । क्रमशः उनके ग्राठ गुण इस प्रकार हैं नारणं च दंसरणं चिय, श्रव्वाबाहं तहेव सम्मत्तं । अक्खय for प्ररुवी, प्रगुरुलहुपीरियं हवइ || (१) अनन्तज्ञान, ( २ ) अनन्तदर्शन, (३) अव्याबाध सुख, (४) अनन्त चारित्र, (५) अक्षयस्थिति, (६) अरुपित्व, (७) अगुरुलघु और ( ८ ) अनन्तवीर्य, ये उक्त आठ गुण सिद्धभगवन्तों के हैं । (१) अनन्तज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म का सर्वथा क्षय होने पर आत्मा को यह अनन्तज्ञान अर्थात् केवलज्ञान गुण प्राप्त होता है । जिससे वह लोकrata के स्वरूप को समस्त प्रकार से जान श्रीसिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन- ६०
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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