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________________ और मिश्र ये चार भेद किये हैं। सूक्ति प्रधान होने के कारण महाराष्ट्री को उत्कृष्ट प्राकृत माना है। शौरसेनी, गौड़ी, लाटी एवं अन्य देशों में बोली जाने वाली भाषाओं को प्राकृत तथा गोप, चाण्डाल और जकार आदि द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं को अपभ्रंश कहा है। बृहत्कथा को भूत-भाषामयी और अद्भुत अर्थ वाली बताया है। 90. कुन्दकुन्द आचार्य प्राकृत भाषा के महान् विद्वान् तथा जैन सिद्धान्त साहित्य के प्ररूपक आचार्य कुन्दकुन्द का नाम जैनाचार्यों में सर्वप्रथम लिया जाता है। भगवान् महावीर एवं गौतम गणधर के पश्चात् मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो कहकर किसी भी मंगल कार्य के प्रारंभ में उनका स्मरण किया जाता है। आचार्य कुन्दकुन्द ने भारतीय संस्कृति को तत्त्वज्ञान ही नहीं, अध्यात्म प्रधान आचार-विचार भी प्रदान किये हैं। उन्होंने आत्म-ज्ञान एवं आध्यात्मिक साहित्य द्वारा भौतिक सुखों एवं सांसारिक लिप्सा को त्यागने का मार्ग बताकर भौतिकता के अंधकार में आध्यात्मिकता की ज्योति को प्रज्वलित किया। उनके अनुसार ज्ञान एवं दर्शन के साथ चारित्र का समन्वय करने पर ही मुक्ति शीघ्रतागामी हो सकती है। आत्मा की मुक्ति के लिए उन्होंने बाह्य संयमित जीवन के साथ-साथ ध्यान एवं तपश्चरण पर भी बल दिया। भारतीय चिन्तकों और ग्रन्थकारों में आचार्य कुन्दकुन्द का अग्रपंक्ति में स्थान है। उन्होंने अपने विपुल वाड्मय के द्वारा भारतीय संस्कृति को तत्वज्ञान और अध्यात्मप्रधान विचार तथा आचार प्रदान किया है। भारतीय साहित्य में प्राकृत भाषा के महापण्डित और इस भाषा में निबद्ध सिद्धान्त-साहित्य के रचयिता के रूप में इनका नाम दूर अतीत काल से निश्रुत है। आचार्य कुन्दकुन्द एक महान् प्रभावशाली आचार्य हुए हैं, जो पिछले दो हजार वर्षों में हुए हजारों आचार्यो में अद्वितीय एवं असाधारण है। उनके उत्तरवर्ती अनके ग्रन्थकारों ने अपने ग्रन्थों में उन्हें सश्रद्ध स्मरण किया है। इतना ही नहीं, शिलालेखों में भी उनकी असाधारण विद्वत्ता, संयम, अद्भुत इंद्रिय-विजय, प्राप्त ऋद्धि-सिद्धियों आदि का विशेष उल्लेख किया गया है। पट्टावलियों में विदित हैं कि उन्होंने 11 वर्ष की अवस्था में ही साधु-दीक्षा ले ली थी और समग्र जीवन संयम और तपोनुजान-पूर्वक व्यतीत किया था। वे लगभग 95 वर्ष तक जिये और इस लम्बे जीवन में उन्होंने दीर्घ, 640 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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