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________________ जाता है। सोमदत्ता को लेकर उज्जैनी लौटते समय धनंजय नाम के चोर से अगडदत्त का सामना होता है जिसका वह वध कर देता है। उज्जैनी पहुँचने पर सोमदत्ता के साथ उद्यान यात्रा में सोमदत्ता को सर्प डस लेता है। विद्याधर युगल के स्पर्श से वह चेतना प्राप्त करती है। देवकुल में पहुँचकर सोमदत्ता अगडदत्त के वध का प्रयत्न करती है। स्त्री-निन्दा और संसार-वैराग्य के रूप में कहानी का अन्त होता है। जर्मन विद्वान् डॉक्टर आल्सडोर्फ ने इस कथानक का विश्लेषण कर इसे हजारों वर्ष प्राचीन कथानकों की श्रेणी में रखा है। संभवतः अति प्राचीनता के कारण ही उक्त रचना को अगडदत्तपुराण कहा गया है। 7.अनन्तनाहचरियं इसमें 14 वें तीर्थंकर का चरित वर्णित है। ग्रन्थ में 1200 गाथाएँ हैं। ग्रन्थकार ने इसमें भव्यजनों के लाभार्थ भक्ति और पूजा का माहात्म्य विशेष रूप से दिया है। इसमें पूजाष्टक उद्धत किया गया है जिसमें कुसुम पूजा आदि का उदाहरण देते हुए जिनपूजा को पाप हरण करनेवाली, कल्याण का भण्डार और दारिद्रय को दूर करने वाली कहा है। इसके रचयिता आम्रदेव के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि हैं। इन्होंने इसकी रचना सं. 1216 के लगभग की है। 8. अनन्तहंस कवि इस कुम्मापुत्तचरिय के रचयिता तपागच्छीय आचार्य हेमविमल के शिष्य जिनमाणिक्य या जिनमाणिक्य के शिष्य अनन्तहंस हैं। कुछ विद्वान् अनन्तहंस को ही वास्तविक कर्ता मानते हैं और कुछ उनके गुरु को। ग्रन्थ में रचनाकाल नहीं दिया गया पर तपागच्छपट्टावली में हेमविमल को 55वाँ आचार्य माना गया और उनका समय 16वीं शताब्दी का प्रारम्भ बैठता है। इसलिए प्रस्तुत कथानक का काल 16वीं शताब्दी का पूर्वार्ध माना जा सकता है। १. अनुत्तरौपपातिकदशा (अनुत्तरोववाइयदसाओ) अनुत्तरौपपातिकदशा का अर्धमागधी आगम के अंग ग्रन्थों में नवाँ स्थान है। इस आगम ग्रन्थ में महावीरकालीन उन उग्र तपस्वियों का वर्णन हुआ है, जिन्होंने अपनी धर्म-साधना द्वारा मरण कर अनुत्तर स्वर्ग विमानों में जन्म लिया, जहाँ से केवल एक बार ही मनुष्य योनि में आने से मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। वर्तमान में यह प्राकृत रत्नाकर 03
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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